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बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ - सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 2 ..

बातों ही बातों में उनसे प्यार  हुआ.

ये मत  पूछो  कैसे कब इक़रार हुआ

.      

जब से आँखें उनसे मेरी चार हुईं.

तब से मेरा जीना भी दुश्वार हुआ

.

वो शरमाएँ जैसे  शरमाएँ कलियाँ.

रफ्ता रफ्ता चाहत का इज़हार हुआ

.

दिल की बातें वो  ऐसे पढ़  लेता है.

दिल न हुआ जैसे कोई अख़बार हुआ

.

उनसे  ही खुशियाँ है मेरे आंगन में.

उनसे ही  रौशन मेरा घर बार हुआ

.

आँखों में बस उनका चेहरा दिखता है.

शोख़ हसीना का जब से दीदार हुआ

....

मौलिक व अप्रकाशित

Gazal by salimrazarewa

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on November 1, 2017 at 8:41pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी ,
ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by SALIM RAZA REWA on November 1, 2017 at 8:41pm

जनाब विजय निकोरे जी ,
ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by vijay nikore on November 1, 2017 at 4:49pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है। बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 30, 2017 at 8:45pm
बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई ज़नाब सलीम साहब..बधाई
Comment by SALIM RAZA REWA on October 30, 2017 at 8:40am
आली जनाब समर साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया ग़ज़ल में आपके इस्लाह के मुताबिक तब्दीली कर दी गई है.. शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on October 30, 2017 at 8:38am
जनाब तस्दीक़ साहब,
आपकी इस्लाह के मुताबिक़ तब्दीली कर दी गई है,
ग़ज़ल पे आपकी शिरक़त के लिए बहुत शुक्रिया..
Comment by SALIM RAZA REWA on October 30, 2017 at 8:35am
जनाब राम अवध जी,
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on October 30, 2017 at 8:35am
जनाब अफरोज साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया,
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 29, 2017 at 9:44pm
खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई
Comment by Samar kabeer on October 29, 2017 at 9:06pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
सब कुछ गुणीजन बता ही चुके हैं,मतले के सानी मिसरे में 'पूंछो' को "पूछो" कर लें,दूसरे शैर के ऊला में 'आँखे' को "आँखें"कर लें,तीसरे शैर के ऊला में 'शरमाए' को "शरमाएँ" कर लें,

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