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बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ.
ये मत पूछो कैसे कब इक़रार हुआ
.
जब से आँखें उनसे मेरी चार हुईं.
तब से मेरा जीना भी दुश्वार हुआ
.
वो शरमाएँ जैसे शरमाएँ कलियाँ.
रफ्ता रफ्ता चाहत का इज़हार हुआ
.
दिल की बातें वो ऐसे पढ़ लेता है.
दिल न हुआ जैसे कोई अख़बार हुआ
.
उनसे ही खुशियाँ है मेरे आंगन में.
उनसे ही रौशन मेरा घर बार हुआ
.
आँखों में बस उनका चेहरा दिखता है.
शोख़ हसीना का जब से दीदार हुआ
....
मौलिक व अप्रकाशित
Gazal by salimrazarewa
Comment
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी ,
ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब विजय निकोरे जी ,
ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है। बधाई।
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