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सबसे बड़ी रदीफ़ में ग़ज़ल का प्रयास, सिर्फ रदीफ़ और क़ाफ़िया में पूरी ग़ज़ल - सलीम रज़ा रीवा

1222 1222 1222 1222
.....
वतन की बात  करनी हो तो मेरे पास आ जाओ .
अमन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ 
.....
बहारों  से  नज़ारों  से  सितारों  से नहीं मतलब .
नयन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ
....
गुलो गुलशन कली औ फूल शबनम मन को भाते है.
चमन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ
.....
न तो शिकवा शिकायत रूठने की बात मत करना.
मिलन  की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ

…..

बिना  समझे  न  ढूंढो  ऐब  मेरी  शायरी  में तुम.

सुख़न की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ

.....
रज़ा' मुझको नहीं  भाती  ये ख़ामोशी ये मायूसी.
जतन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ

.....
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by SALIM RAZA REWA on November 2, 2017 at 8:45pm

 दरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी

आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, आपकी महब्बत सलामत रहे.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 25, 2017 at 12:28pm
बहुत सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 21, 2017 at 1:04pm
आ. बृजेश जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया आप जैसे उम्दा ग़ज़ल कारों की प्रतिक्रिया पाकर मेरा प्रयास सार्थक रहा.. पुनः शुक्रिया.
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 21, 2017 at 11:01am
आदरणीय सलीम जी बाकई बेहतरीन ग़ज़ल हुई..बधाई
Comment by SALIM RAZA REWA on October 20, 2017 at 9:34pm
आ. इंद्रविद्यावचस्पति तिवारी जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, आपकी महब्बत सलामत रहे.
Comment by indravidyavachaspatitiwari on October 20, 2017 at 7:21pm
नयन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ।इतनी सटीक प्रहार करता है कि मन प्रफुल्ल हो जाता है। इतनी हृदयग्राही रचना के लिए बधाई कबूल करें।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 20, 2017 at 5:48pm
आ. आशुतोष जी आपकी महब्बत और हौसला अफज़ाई के बहुत बहुत शुक्रिया..
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 20, 2017 at 5:37pm
वाह आदरणीय ऐसी ग़ज़ल तो मैंने पहली बार पढी।।कमाल के इस रचना के लिए हरदुक बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by SALIM RAZA REWA on October 20, 2017 at 1:13pm
सुरेंद्र भाई साहब, ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए आपका शुक्रिया, रदीफ़ में कोई प्रकार नहीं होती भाई मेरे ग़ज़लों में सबसे बड़ी रदीफ़ है.. और जहां तक भरोसा है 21 वी. सदी में इस तरह से शायद कोई ग़ज़ल नहीं कही गई है. सादर I thinks it's a big radif
Comment by surender insan on October 20, 2017 at 12:00pm
बिना समझे न ढूंढो ऐब मेरी शायरी में तुम।
सुख़न की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ।।
वाह जी वाह बहुत उम्दा जी। बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक़ बाद कबूल करे जी।
आदरणीय एक बात जानकारी के लिए पूछ रहा हूँ जी। रदीफ़ के तीन प्रकार अभी तक पता है। छोटी रदीफ़,मंझली रदीफ़ ,बड़ी रदीफ़।
आदरणीय सबसे बड़ी रदीफ़ से क्या आशय है जी? रदीफ़ से पहले सिर्फ काफ़िया की जगह बची है क्या यही जी?

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