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दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं,
मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी ज़िन्दगी नही
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ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर,
किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं
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तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे,
होता जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं
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वो क्या गया की रौनके महफ़िल चली गयी,
जल तो रही है शम्अ मगर रोशनी नहीं
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ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल,
मेरे, सुख़न का रंग कोई काग़ज़ी नहीं
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मैं खुद गुनाहगार हूँ अपनी निगाह में,
उसके ख़ुलूस-ओ-प्यार में कोई कमी नहीं
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तुझसे रज़ा के शेरों में संदल सी है महक,
मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी शायरी नहीं
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मौलिक व अप्रकाशित
Gazal by salimrazarewa
Comment
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ. सलीम साहब
आदरणीय सलीम साहब,
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. शुभकामनाएं.
सादर
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