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GAZAL-हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले ! SALIM RAZA REWA

                ||ग़ज़ल|
हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले !
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले !

इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !

जीले खुशिओं की पतवार है हाँथ में !
बहरे ग़म में किनारा मिले न मिले !

वो भी होते तो आता मज़ा और भी !
फिर सुहाना नज़ारा मिले न मिले !

साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी !
ज़िन्दगी फिर खुदारा मिले न मिले !

माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है !
ये मुहब्बत की धारा मिले न मिले !


 आज जी भर के दीदार कर ले रज़ा !
चाँद का ये नज़ारा मिले न मिले !

  • शायर सलीम रज़ा रीवा

Views: 878

Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on September 9, 2017 at 5:10pm
परम आदरणीय गणेशजी आपकी इनायत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 9, 2017 at 5:08pm
आ. अभिनव जी आपकी नज़रे इनायत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, उम्मीद है आगे भी आप की मुहब्बत मिलती रहेगी,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 9, 2017 at 5:06pm
आ. आशीष जी आपकी मुहब्बत के लिए शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 9, 2017 at 5:05pm
आ. वेदि‍का जी ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया,
Comment by वीनस केसरी on February 16, 2013 at 4:14pm

आज जी भर के दीदार कर ले रज़ा !
चाँद का ये नज़ारा मिले न मिले !

KYA KAHNE SALEEM SAHIB
SHAANDAAR GHAZAL HUI HAI

BADHAI SVEEKAAREN

Comment by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 3:51pm

बहुत खूब आदरणीय !!!

 माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है !
ये मुहब्बत की धारा मिले न मिले !

वाह वाह................


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 16, 2013 at 1:43pm

इस बेहतर कोशिश पर बधाई, सलीम भाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 16, 2013 at 11:52am

//इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !/

वाह वाह सलीम साहब, बहुत खूब, बढ़िया शेर कहें हैं, अच्छी ग़ज़ल , दाद कुबूल करें ।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 11:34am

बहुत खूब आदरणीय  सलीम जी

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल करें 

 माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है !
ये मुहब्बत की धारा मिले न मिले !

वाह वाह................

Comment by vijay nikore on February 16, 2013 at 10:18am

आदरणीय सलीम जी:

 

माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है !
ये मुहब्बत की धारा मिले न मिले !

 

इस उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई।

 

विजय निकोर

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