For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिशाविहीन

दयनीय दशा

दुख में वज़्न

दुख का वज़्न

व्यथित अनन्त प्रतीक्षा

उन्मूलित, उचटा-सा है मन

कि जैसे रिक्त हो चला जीवन

खाली लगती है सुबह

अनबूझे विषाद को उभारती

भूरे नभ से आती है साँझ

ढलता नहीं है अब

धड़ाम गिर जाता है

दूर कहीं पर क्षितिज में सूरज

पहर गिनते बीत जाती है भारी रात

घड़ी की सुइयों पर

अपना सिर टिकाय

पलट जाती है अन्यमनस्क

उच्छ्वास लेती एक और तारीख़

रह जाता है अवशेष केवल

एकाकीपन का गीलापन ...

बादल रिमझिम

         --------

--  विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 840

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2022 at 11:11pm

आदरणीय विजय सर, आपके सूक्ष्म अनुभवों का शाब्दिक होना गहरे डूब, अनहद की मद्धिम तरंगों का भान कराता है.

अव्याख्य एकाकी पीड़ा की दशा, बहुत कुछ छूट जाने के संताप, विभ्रम के ऊहापोह को जीता मन इस प्रकृति को ही उलाहना देता है. सारा संसार अपने वैशिष्ट्य के बावजूद शुष्क लगता है. ऐसे में खौलती निस्सारता को जिस उत्कटता से आपने प्रस्तुत किया है, कि प्रस्तुति सरस हो गयी है. 

शब्दों की अक्षरियों पर तनिक ध्यान देना था, आदरणीय. वैसे, आपने सुझाव के अनुसार सुधार कर लिया है. अत: मैं आपकी अभिव्यक्ति पर संकेन्द्रित रहा. 

सादर बधाइयाँ, आदरणीय. 

Comment by vijay nikore on March 30, 2022 at 2:28pm

मान्यवर चेतन प्रकाश जी। विषाद शब्द को सही कर दिया है, इंगित करने के लिए धन्यवाद। 

ओ बी ओ सीखने-सिखाने का मंच है, यही उसका एक उच्च उद्देश्य है, यही उसकी महानता है। लगभग एक दशक से देखता आ रहा हूँ कि 

सीखने-सिखाने के लिए इस मंच पर सदस्य एक दूसरे का हाथ पकड़ कर, समझा कर, आदर से एक दूसरे को आगे बढ़ाते हैं, प्रेरित करते हैं। यहाँ पर हम उत्साह बढ़ाते हैं, किसी को उत्साहहीन नहीं करते।स्वयं को ऊँचा दिखाने के लिए शब्दों से अनुचित शब्दों के पत्थर नहीं मारते। 

आप विद्वान हैं, परन्तु अपनी विद्वता में रचे, अपनी गत उपाधियों में मंजे, आप मेरे प्रति तथा इस मंच पर कई बार अन्य माननीय सदस्यों के प्रति भी, आप शिष्टता को भूल रहे हैं। आप  "औचित्य"  की बात करते हैं, परन्तु मान्यवर औचित्य शिष्टता पर भी लागू होता है, ज़्यादा लागू होता है।

मुझको आपसे कोई विवाद नहीं करना, आपको कोई व्याख्या नहीं देनी, और यदि आप कुछ कहेंगे या लिखेंगे, तो उसका कोई उत्तर नहीं देना। आपकी नाम-रूप-उपाधि-रची विद्वता आपको मुबारक। आप दुश्चिंता देते हैं, मुझको आपसे दुश्चिंता नहीं लेनी।

Comment by Chetan Prakash on March 29, 2022 at 6:21pm

काव्य मे औचित्य शब्द का उद्गम उचित शब्द से हुआ है:

उचितस्य  भावम्  औचित्य ' औचित्य का शाब्दिक अर्थ  उचित  का  भाव  है ! आचार्यों ने काव्य  का  आनंद , आदरणीय, 'औचित्य को ही माना है, सादर 

Comment by Samar kabeer on March 29, 2022 at 3:22pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब ,हमेशा की तरह एक अच्छी रचना से नवाज़ा है आपने मंच को, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I 

Comment by Chetan Prakash on March 29, 2022 at 1:56pm
लेकिन मान्यवर, 'विशाद' जैसा कोई शब्द कम से कम मैंने नहीं पढ़ा है, सही शब्द, 'विषाद' है ! यह फिर इस बात की पुष्टि करता है कि अपने मन से ही व्याख्या करते हैं और 'मनपढ़' हौने के मन की वर्तनी प्रयोग करते हों, कविता की दृष्टि से सर्वथा अमान्य है, क्योंकि ऐसी मनोदशा से आप काव्य के औचित्य और सम्प्रेषणीयता के सर्वमान्य सिद्धांत की हत्या ही कर रहे हैं, बन्धु!
Comment by vijay nikore on March 28, 2022 at 3:43pm

माननीय चेतन प्रकाश जी, सादर नमस्कार।

आपने मेरी इस रचना को समय दिया, अपने अमूल्य विचार दिए, इसके लिए मैं हृदयतल से आभारी हूँ। मुझको आप जैसे पाठक की ही ज़रूरत है, जो मुझको त्रुटियों का आभास दे सके, सही मार्ग बताए।

प्राय: ऐसा भी होता  है कि जो भाव मन में हो, वह पन्ने पर नहीं उतरता, अत: मैं कोई भी रचना लिखने के बाद उसके शब्दों को, उनमें निहित भावों को देर तक, कभी कई घंटे, कभी कई दिन, उन पर सोचता ही रहता हूँ, परिवर्तन..और फिर और परिवर्तन करता रहता हूँ।

१. अन्यमनस्क शब्द को मैं सही कर रहा हूँ।

२. "व्यथित अनन्त प्रतीक्षा": इससे मेरा अभिप्राय था कि यह "कभी समाप्त न होती प्रतीक्षा" अनन्त है, परन्तु अनन्त होने के बावजूद अब थक-सी गई है... कुछ ऐसे कि जैसे प्रिय राज कपूर जी के चलचित्र "अंदाज़" में गीत के शब्द हैं.."रो-रो कि ग़म भी हारा"।

३. "उन्मूलित उचटा-सा मन" : शब्दकोश में उन्मूलित के दो मान्य दिए गए हैं...(अ) जड़ से उखड़ा हुआ, (ब) अस्तित्व समाप्त किया हुआ.... मैंने इस मान्य का प्रयोग किया है। रचना में इस शब्द से मेरा अभिप्राय है कि मन उचट गया है इतना कि जैसे यह अस्तित्वहीन हो गया है.. कि जैसे इसके लिए जीना या न जीना अब मान्य नहीं रखता।

४. "अनबूझे विशाद को उभारती" : अनबूझा विशाद... विशाद इतना कि अब उसकी कोई गणना नहीं की जा सकती, विशाद इतना कि जैसे दुख बहुत बढ़ जाने पर कहते हैं, "क्या खुशी क्या गम"।

चेतन प्रकाश जी, हृदयतल से पुन: आपका आभार।

Comment by Chetan Prakash on March 27, 2022 at 6:08pm

नमस्कार, विजय निकोर जी, आपको वर्तनी पर काम करना होगा क्यों कि शब्द ही भाव का वाहक होता है, और उसके सम्यक प्रयोग के बिना अथवा अशुद्ध प्रयोग से भावार्थ का वहन कैसे हो पाए गा, बंधु  ? 

"व्यथित अनन्त प्रतीक्षा" से आपका अभिप्राय है, कम से कम मुझे समझ नहीं आया! 

"उन्मूलित, उचटा सा मन" से भी कुछ समझ नहीं आया  कदाचित आप बता सकें  ! 

'अनबूझे विशाद को उभारती' भी मेरी समझ से परे है! 

सही शब्द ' अन्यमनस्क' है, माननीय! 

Comment by vijay nikore on March 27, 2022 at 11:32am

प्रिय समर कबीर जी, बृजेश कुमार जी और लक्ष्मण धामी जे। रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

सादर,

विजय निकोर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 17, 2021 at 8:22pm

वाह क्या कहने आदरणीय बहुतख़ूब...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2021 at 9:20am

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service