मन की कारिख धोई कै, प्रेम रंग चटकाय
मोद सरोवर डूबिए, काम, क्रोध विलगाय
पाप ताप की होलिका जब जारै कोई बुद्ध
प्रकटै तब आह्लाद संग नित्य, मुक्त जो शुद्ध
ज्ञानाग्नि में दहन कर , सभी शुभ अशुभ कर्म
होली हो वैराग्य की, जाने सत का मर्म
मन आ बैठी होलिका, उपजा अति उन्माद
जला दिया जब राक्षसी को, प्रकटा प्रह्लाद
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी, प्रस्तुति सुन्दर लगने हेतु हार्दिक धन्यवाद।शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर होली की प्रस्तुति, हार्दिक शुभकामनाएं
आ0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी , रचना सुन्दर लगी, जानकर हर्ष हुआ हार्दिक आभार आपका
आ0 सुशील सरन जी, प्रस्तुति सुन्दर लगी ,जानकर खुशी हुई । हार्दिक धन्यवाद आपका
आदरणीया ऊषा जी, आप दोहा छंद पर अभ्यासरत हों. प्रस्तुति का ढंग श्लाघनीय है.
होली की शुभकामनाएँ
शुभातिशुभ
आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन। होली पर सुन्दर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
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