For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐसा लगता है की मेरा यों अब गुजरा जमाना है,
बेगाना रुख किये 'साकी'! यहाँ तेरा मैखाना है.

फकीरों को कहाँ यारो कभी मिलता ठिकाना है,
बना था आशियाना, आज जो बिसरा मैखाना है!

कभी अपना बना ले पर कभी बेदर्द ठुकरा दे,
सयाना जाम साकी! और आवारा मैखाना है.

तेरी हर एक हंसी पर ही चहक कर के मचल जाना.
हमेशा हुस्न-ए-जलवो पर जहाँ हारा मैखाना है.

तेरी तस्वीर के बिन ही मै पीने आज बैठा हूँ,
ख़ुशी या गम हो जुर्माना मुझे मारा मैखाना है.
    
हमेशा ही परोसे जाम हर 'शीशे' में वो भर के, 
सरापा पीने के जज्बातों को प्यारा मैखाना है.

छलावे में कभी इन्सान से पाला नहीं पड़ता,
छिपाया है हकीकत से वो एक तारा मैखाना है.

बुढ़ापे में यही बेटों ने 'बस्तीवी' दिया ताना,
जवानी में लुटाया दोस्तों पे सारा मैखाना है.

Views: 632

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 23, 2012 at 10:39pm

Shri Avinash ji, saadar namaskaar. JI bahut bahut shukriya aapki daad ke liye.

Comment by AVINASH S BAGDE on March 23, 2012 at 7:58pm

बुढ़ापे में यही बेटों ने 'बस्तीवी' दिया ताना,
जवानी में लुटाया दोस्तों पे सारा मैखाना है.

सुन्दर रचना के लिए  बधाई स्वीकारें राकेश भाई.

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 2:22pm

राकेश भाई इस ग़ज़ल का ही एक और शेर है जो मुझे आत्ममुग्ध किये रहता है

वो सब कुछ जनता है और फिर भी
अँधेरे को उजाला बोलता है

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 23, 2012 at 1:42pm

आप ही का लिखा एक शेर याद दिला रहा हूँ,

सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है

वो बस मीठा ही मीठा बोलता है

अब आपने कह दिया छोड़िये, तो ये लीजिये छोड़ दिया हमने. धन्यवाद.

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 1:38pm

छोडिये भी राकेश भाई इन बातों में क्या रखा है ,,,
आपकी सुन्दर रचना के लिए पुनः बधाई स्वीकारें

सादर

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 23, 2012 at 1:28pm

भाई वीनस जी, नमस्कार. मै आपसे ख़ास तौर पर ये जानना चाहूँगा की हुस्न-ए-जलवो, क्या व्याकरण की दृष्टि से सही है, मैं हुस्न के जलवो लिखना chaah रहा था, किन्तु उससे मात्रा बढ़ जाती, अगर कुछ सुधर हो सके तो बताएं. बाकि सभी रचनाओं में आपकी तारीफ से मन बहुत आह्लादित हुआ है. धन्यवाद.

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 1:03pm

तेरी हर एक हंसी पर ही चहक कर के मचल जाना.
हमेशा हुस्न-ए-जलवो पर जहाँ हारा मैखाना है.

साकी ने तो अच्छे अच्छे को लपेट रखा था आप भी लपेटे में आ गये ?
हा हा हा

रचना की श्रेष्ठता में कोंई दो राय नहीं
बधाई
सादर

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 22, 2012 at 12:10am

भाई आनंद जी, आदरणीय प्रदीप जी एवं शशि जी, मेरा आप लोग की दाद का विनम्र अभिवादन.
भाई आनंद जी: बस्तिवी तो हम उसी दिन थे जब हम वहा पैदा हुए थे :) बाकि मै आपका मतलब समझ गया.
आदरणीय प्रदीप जी: आप यों ही प्रेरित करते रहें एक दिन जरूर अच्छा लिखेंगे.
आदरणीय शशि जी: आप जैसे गुरुजनों एवं अग्र जनो का सानिध्य मिलता रहेगा तो जरूर एक दिन चेला शक्कर हो जायेगा :)
एक बार पुनः हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 21, 2012 at 9:42pm

snehi, rakesh jii. aap ka mison pura hoga. sahi jagah hai aap. badhai. 

Comment by Dr. Shashibhushan on March 21, 2012 at 8:16pm

मान्यवर राकेश जी,
सादर !
पहली बात कि इस मंच पर आपको अपने को तराशने का
बहुत अच्छा मौक़ा है ! परिश्रम सार्थक होता हुआ नजर भी
आ रहा है ! आभार के साथ मेरी हार्दिक शुभकामनायें !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service