For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भाव निर्झरणी बहे /गीत

भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 
जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना

परख सत्यासत्य की रख ,सृजन पथ गढ़ते रहें 
त्याग व्यष्टि समष्टि हित ,शब्द नद भरते रहें 
कर नवल,चिंतन,मनन शुभ ,गूंथ माला काव्य की
शारदे माँ की हृदय से कवि करो तुम अर्चना 

भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 
जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना 

मनुजता हित नाद अनहद ,अटल दृढ विश्वास के 
स्नेह सिंचित सुर सजादो,दिव्यतम आभास के 
गरल विगलित बैर के हों ,प्रीत के मकरंद से 
मधुरतम शाश्वत तरंगित, कवि रचो सुख-व्यंजना 

भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 
जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना

Views: 822

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seema agrawal on August 24, 2012 at 11:27am

आदरणीय सौरभ जी आपकी प्रतिक्रिया और शुभकामनाओं के लिए हृदय से धन्यवाद 

Comment by seema agrawal on August 24, 2012 at 11:26am

धन्यवाद सूबे सिंह सुजान जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 10:31pm

आदरणीया सीमाजी, आपकी इस कविता के लिये आपको हृदय से बधाई दे रहा हूँ. आपका स्वाध्याय मुखर हो कर प्रसूत हआ है.

इन पंक्तियों पर सादर बधाई स्वीकारें -

गरल विगलित बैर के हों ,प्रीत के मकरंद से
मधुरतम शाश्वत तरंगित, कवि रचो सुख-व्यंजना

सादर शुभकामनाएँ.

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 10:17pm

सीमा जी आपने कवि के लिये एक सुन्दर हिदायत दी है । बहुत अच्छी बात है।

भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 
जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना

Comment by seema agrawal on August 8, 2012 at 4:39pm

धन्यवाद अरुण शर्मा "अनंत"जी एवं अविनाश जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 8, 2012 at 12:12pm

आदरणीया बहुत सुन्दर गीत लिखा है आपने, बहुत-२ बधाई

Comment by AVINASH S BAGDE on August 8, 2012 at 10:24am

कर नवल,चिंतन,मनन शुभ ,गूंथ माला काव्य की...umda.

स्नेह सिंचित सुर सजादो,दिव्यतम आभास के ..bahut khoob

मधुरतम शाश्वत तरंगित, कवि रचो सुख-व्यंजना 

जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना...dil se likhi bat...wah...Seema ji

Comment by seema agrawal on August 7, 2012 at 11:11pm

संदीप जी लक्ष्मण जी  रेखा जी और अशोक जी  आप सभी को गीत पसंद करने के लिए धन्यवाद 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 7, 2012 at 10:21pm

मनुजता हित नाद अनहद ,अटल दृढ विश्वास के 
स्नेह सिंचित सुर सजादो,दिव्यतम आभास के 
गरल विगलित बैर के हों ,प्रीत के मकरंद से 
मधुरतम शाश्वत तरंगित, कवि रचो सुख-व्यंजना 
बहुत ही सुन्दर भावों से सजे इस गीत के लिए सीमाजी बधाई स्वीकारें.

Comment by Rekha Joshi on August 7, 2012 at 10:00pm

भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 
जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना ,अति सुंदर गीत सीमा जी ,मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service