For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भले ही आज जीवन में, तेरे कायम अँधेरा है
इसी दुनिया में ही लेकिन, कहीं रौशन सवेरा है

मै इक ऐसा परिंदा हूँ, नही सीमाएं है जिसकी
मेरी परवाज़ की खातिर, ये दुनिया एक घेरा है

कभी हिंदू कभी मुस्लिम. रहे हैं हारते हरदम
सियासत खेल ऐसा है, न तेरा है न मेरा है

कुतरते ही रहे है देश को, हरदम जहाँ नेता
इसे संसद न कहियेगा, ये चूहों का बसेरा है

न जलती है न मरती है, महज़ कपड़े बदलती है
“ऋषी” इस रूह की खातिर, ये जीवन एक डेरा है

अनुराग सिंह “ऋषी”

अप्रकाशित एवं मौलिक

Views: 625

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anurag Singh "rishi" on June 9, 2013 at 2:05pm

आभारी हू सर उस स्नेह के लिए जो आपसभी से मिल रहा है नमन स्वीकारें
सादर  ----> आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा सर और वीनस केसरी सर :-)

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 1:04am

भाव और शिल्प स्तर पर यह एक कामयाब ग़ज़ल है और ग़ज़लकार बधाई का पात्र है
ढेरो दाद ...

हाँ कहन के स्तर पर कुछ कच्चापन दीखता है मगर जब भाव हो और शिल्प की समझ भी तो कहन पर काबू पाना बहुत मुश्किल कहाँ रह जाता है

शुभकामनाएं

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 6, 2013 at 2:18pm

बेहतरीन ..सादर बधायी के साथ 

Comment by Anurag Singh "rishi" on June 5, 2013 at 11:32pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी
अवश्य मैम आपका सुझाव सर आँखों पर सीखना ही तो है मुझे आप सभी से
धन्यवाद आपको
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on June 5, 2013 at 11:30pm

आप सभी के इतने प्यार के आगे मै नतमस्तक और कृतघ्न हूँ
आप सभी गुणी जनों के इस प्यार ने एक नई ऊर्जा से परिपूर्ण कर दिया है
आशा है आगे भी आप सभी का आशीष ऐसे ही प्राप्त होता रहेगा
सादर नमन आप सभी को :-)

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 9:23pm

वाह वाह वाह 

क्या बात है बहुत सुन्दर आदरणीय 

मै इक ऐसा परिंदा हूँ, नही सीमाएं है जिसकी 
मेरी परवाज़ की खातिर, ये दुनिया एक घेरा है...लाजवाब 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:47pm

सुन्दर प्रयास! अच्छी ग़ज़ल कही आपने! बधाई स्वीकार हो ऋषि जी!

Comment by Abid ali mansoori on June 5, 2013 at 7:00pm
आदरणीय अनुराग भाई,क्या कहूं शब्द नहीँ मिलते,हार्दिक बधाई आपको!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2013 at 5:48pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है ऋषी जी ---बस इस पंक्ति पर सलाह देना चाहूंगी --- इसे संसद तो न कहिये, ये चूहों का बसेरा है----इसे संसद नहीं समझो ये चूहों का बसेरा है प्रिय अरुन  जी की बात पर गौर फरमाएं  दाद कबूल कीजिये |

Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2013 at 4:40pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जू भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर "
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service