For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तकलीफ (अरुण कुमार निगम)

[अंतराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर लघु कथा]


लगभग एक माह पूर्व बेटे का विदेश से फोन आया था कि वह मिलने आ रहा है. मन्नू लाल जी खुशी से झूम उठे. पाँच वर्ष पूर्व बेटा नौकरी करने विदेश निकला था. वहीं शादी भी कर ली थी. अब एक साल की बिटिया भी है.शादी करने की बात बेटे ने बताई थी. पहले तो माँ–बाप जरा नाराज हुये थे, फिर यह सोच कर कि बेटे को विदेश में अकेले रहने में कितनी तकलीफ होती होगी, फिर बहू भी तो भारतीय ही थी, अपने-आप को मना ही लिया था.


मन्नू लाल जी और उनकी पत्नी दोनों ही साठ पार कर चुके थे. पेंशन में गुजारा आसानी से हो जाता था. बेटे ने कभी पैसे नहीं भेजे तो क्या हुआ, विदेश में उसके अपने खर्च भी तो बहुत होंगे. भविष्य-निधि के पैसों से बेटे की पढ़ाई पूरी की थी. नौकरी के समय भी कुछ पैसे खर्च हुये थे. फिर भी लगभग पचास हजार बच ही गये थे. बैंक में फिक्स्ड कर दिया था.


मन्नू लाल जी ने अपनी धर्मपत्नी से कहा – बेटा बहू और बिटिया के साथ विदेश से आ रहे है. वहाँ कितनी सुविधा में रहते होंगे अपने घर में उन्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी. सोच रहा उनके लिये एक कमरा अच्छे से तैयार कर देते हैं. नये पलंग, नई चादरें ले लेते हैं और हाँ ! एक ए.सी. भी लगवा लेते हैं. उनकी धर्मपत्नी ने भी सहर्ष हामी भर दी.बस कमरे को सजाने की तैयारियाँ शुरू हो गईं. बैंक का फिक्स्ड डिपॉजिट गया, धर्मपत्नी की दो चूड़ियाँ भी गईं मगर यह सब बेटे के लिये ही तो किया है, किसी तरह की तकलीफ भला क्यों होती ?

नियत तिथि भी आई. बेटा, बहू और उनकी बिटिया भी आये. द्वार पर ही आरती से उनका स्वागत हुआ. मन्नू लाल जी और उनकी धर्मपत्नी की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा.
दोनों ने बेटे-बहू को आशीर्वाद दिया. पोती को गोद में उठाते हुये मन्नूलाल जी चौंके, अरे ! बेटा तुम्हारा सामान कहाँ है ? बेटे ने कहा- पापा दर असल बात ये है कि हमने शहर मे होटल में एक कमरा बुक करा लिया था ताकि आपको और माँ को कोई तकलीफ न हो. सामान वहीं है.

मन्नूलाल जी ने कुछ नहीं कहा और पोती को दुलारने लगी. उनकी धर्मपत्नी भी अधरों पर मुस्कान बिखेरते हुये बहू को साथ में लेकर सोफे पर बैठ गई. बैठक में टंगे पिंजरे का तोता मचल कर टें- टें करने लगा मानों आज उसने तकलीफ शब्द का सही अर्थ पा लिया हो.


(मौलिक और अप्रकाशित)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Views: 1063

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on October 6, 2013 at 5:37pm

आदरणीय अरुण जी, 

अगर पिता अपनी बात खुल कर पुत्र से ना कह सके तो उसके लिये बस यही बचता है.अगर पुत्र को मेहमान बना दिया तो उनको मेहमान बनने का पूरा अधिकार है...सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 2:10pm

रोपे पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय ?

रिश्तों और भावनाओं को सम्मान देने तथा करीयर को साधने के मध्य संतुलन बनाया जाय.. इस तथ्य को समझाने-सिखाने के स्थान पर करीयर के प्रति आग्रही होने के तोतारटंत से यदि पीढ़ी प्रतिदिन संतृप्त की जाती रहेगी तो फिर वही तोतारटंत समय आने सिर पर टें-टें ही करता दिखेगा.

कथा ने इसी भावपक्ष को सामने किया है, भाईजी.


अच्छी कथा के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
कथा के शिल्प पर अभी बात नहीं करूँगा, अभी कथा की भावना के साथ बहने का मन कर रहा है.
सादर
 

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 2, 2013 at 9:57am

आह!! कडुवी सच्चाई को प्रस्तुत करती इस सशक्त लघुकथा के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण भईया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 2, 2013 at 9:51am

अक्सर माता पिता, अपने बच्चों की खुशियों की खातिर बहुत सी तकलीफें उठाते है, लेकिन बहुत कम ऐसा होता की बच्चे, माता पिता की ख़ुशी के लिए थोड़ी भी तकलीफ उठा सकें, बहुत ही मर्मस्पर्शी कथा, बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण निगम जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 2, 2013 at 8:01am

पूँजीवादी माहौल में रहने के बाद हर इंसान अक्सर रिश्तों को भी लाभ हानि के तराजू में तौलने लगता हैl ये सोचने वाली बात है तकलीफ किसको होगी, तकलीफ तो उसी को होगी जिसे सुख सुविधा में रहने की आदत हो गयी है जिसने माता-पिता के प्यार को भुला दिया और अपनेपन के रिश्ते को औपचारिकता ही बना दिया। आदरणीय अरुण सर  इस मर्मस्पर्शी लघुकथा के लिये दिली दाद कुबूल करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 1, 2013 at 11:54pm

संशोधित....10. आदरणीय डी.पी.माथुर जी, नि:संदेह, यह आज के समय की सच्चाई ही है. मेरा सौभाग्य है कि आपके मन को छू सका, हृदय से आभार आदरणीय............


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 1, 2013 at 11:53pm

10. आदरणीय डी.पी.माथुर जी, नि:संदेश, यह आज के समय की सच्चाई ही है. मेरा सौभाग्य है कि आपके मन को छू सका, हृदय से आभार आदरणीय............


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 1, 2013 at 11:48pm

9. प्रिय श्री अरुण (अनंत) जी, मैं सदैव आपके स्नेह से अभिभूत होता रहा हूँ, सच खहूँ तो यही मेरी प्रेरणा का प्रमुख तत्व है, हृदय से आभार.................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 1, 2013 at 11:44pm

8. आदरणीय वीनस केसरी जी, किसी भी रूप में आपको संतुष्ट कर पाना किसी भी कलमकार के लिये सफलता का द्योतक है, मुझे प्रसन्नता हुई कि आपके दिल तक पहुँच पाया. दिल से शुक्रिया..................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 1, 2013 at 11:40pm

7. आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपका प्रोत्साहन सदैव मुझे सम्बल प्रदान करता है, हृदय से आभार...............

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service