For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल - आप के चेहरे से डर दिखने लगा।

फाइलातुन  फाइलातुन  फाइलुन

.

धीरे- धीरे सब हुनर दिखने लगा।

उसमें कितना है जहर दिखने लगा।

आँख में कैसी खराबी आ गर्इ,
राहजन ही राहबर दिखने लगा।

लाख डींगे मारिये बेषक मगर,
आप के चेहरे से डर दिखने लगा।

जो दवायें दी थीं चारागर ने कल,
उन दवाओं का असर दिखने लगा।

जो कभी झुकता नहीं था दोस्तो
अब वही सर पाँव पर दिखने लगा।

जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये,
आदमी भी जानवर दिखने लगा।

चलते-चलते पाँव बोझिल हो गये,
है बहुत मुषिकल सफर दिखने लगा।

जबसे आया है यहाँ पर जलजला,
तबसे बेरौनक शहर दिखने लगा।

दोस्तो पीने के पानी के लिये,
एक दिन होगा गदर दिखने लगा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1016

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 8:16pm

वाह वाह आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने सादर बधाई स्वीकारें

जय हो

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 28, 2013 at 12:43pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 27, 2013 at 8:49pm

//आपकी उद जबान में भले ही चेहरा को .चेह्रा लिखा जाता हो और जहर को .जह्र शहर को शह्र परन्तु हिन्दी वालों ने जहर शहर चेहरा ही पुस्तकों में पढ़ा है//

आदरणीय रामअवध सर भाषा आपकी या मेरी नही होती हिन्दुस्तान की पृष्ठभूमि में ये बात तो सही है, आपकी उर्दू मेरी हिन्दी भाषा इस तरह की बातें करना पूरी तरह अप्रासंगिक है, शहर या शह्र, जहर या जह्र इसपे पहले भी चर्चा हो चुकी है लेकिन निष्कर्ष कुछ नही निकला इसलिये शह्र और जह्र को सही माना गया है, लेकिन उच्चारण के लिहाज से चेहरा का वज्न 22 ही होगा। वैसे बहुवचन ''हादसात'' नही बल्कि ''हवादिस'' होता है।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 27, 2013 at 8:15pm

आदरणाीय शकूर जी इन दिनों हिन्दी में भी गजलें कही जारही हैं।हिन्दी की अपनी प्रकृति है और उर्दूकी अपनी प्रकृति। आपकी उद जबान में भले ही चेहरा को .चेह्रा लिखा जाता हो और जहर को .जह्र शहर को शह्र परन्तु हिन्दी वालों ने जहर शहर चेहरा ही पुस्तकों में पढ़ा है। उसी उच्चारण में हम हिन्दी वाले पढ़ते हैं और लिखते हैं।उदर्ू भाषा में हादसा का बहुवचन हादसात होता है परन्तु हिन्दी में बहुवचन हादसे या हादसों होता है। अब आपकी भाषा में गलत हो सकता है परन्तु हिन्दी व्याकरण से सही है।

Comment by MAHIMA SHREE on November 27, 2013 at 7:43pm

दोस्तो पीने के पानी के लिये,
एक दिन होगा गदर दिखने लगा।..... बेहद उम्दा समसामयिक गज़ल... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय

Comment by विजय मिश्र on November 27, 2013 at 4:05pm
बहुत ही सुंदर भावों की अभिव्यक्ति , अतिसुन्दर राम अवधजी |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 26, 2013 at 9:25pm

आदरणीय राम अवध जी बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने हाँ कहीं कही टंकण त्रुटी है ---नीचे आदरणीय नादिर खान जी ने चेहरे की मात्रा पर संशय किया है आपकी गणना २२ सही है किन्तु चेहरा --चेह्रा लिखा जाता है ग़ज़ल में उसी तरह --जह्र - जहर 
शह्र - शहर लिखा जाता है हम भी समवेत सीख ही रहे हैं ओ बी ओ से.आपके सभी शेर बहुत पसंद आये तहे दिल से दाद कबूलें  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2013 at 2:54pm

जो कभी झुकता नहीं था दोस्तो
अब वही सर पाँव पर दिखने लगा।....चुनाव आ रहे हैं ऐसा तो होना ही है ..हकीकत है 

जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये, 
आदमी भी जानवर दिखने लगा।..............................बिलकुल सही कहा है आपने 

चलते-चलते पाँव बोझिल हो गये,
है बहुत मुषिकल सफर दिखने लगा।.............षि...मुश्किल ..कर लें 

दोस्तो पीने के पानी के लिये,
एक दिन होगा गदर दिखने लगा.........................सबसे बड़ी चिंता की बात ..लोग नहीं चेतेंगे तो दुखद होंगे  परिणाम 

 बेषक.....बेशक कर लें 

Comment by Shyam Narain Verma on November 26, 2013 at 10:16am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 26, 2013 at 8:20am

जानवर तो जानवर हैं छोडि़ये,
आदमी भी जानवर दिखने लगा।.........यह शेर बहुत पसंद आया

सार्थक संदेशप्रद गजल पर बधाई आदरणीय राम अवध जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service