For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वे विचार करते हैं
पर नहीं जनम लेता कोई नया विचार बाँझ मस्तिष्क से
इसी सोच विचार में बैठे रहने ने
अकड़ा दी है उनकी पीठ और गर्दन
कहीं से आती भी है आहट
किसी  नए विचार की
तो उस पर ध्यान देने कि अपेक्षा
वो करते हैं प्रयास
अकड़ी गर्दन घुमा कर देखने का कि
ये आवाज़ कहाँ से आती है
तब जाके जान पाता हूँ मैं कि
सुनने से ज़यादा , उनके लिए महत्वपूर्ण है
देखना आवाज़ कि शकलो-सूरत
और इस तरह नहीं ले पाते
वे ' गोद ' किसी भी नए विचार को
क्यूंकि ज़िद है उन्हें कि
पैदा हो हर नया विचार
उन्ही के भीतर से
जिस से आगे बढ़ सके
' वंश'
उनकी नपुंसक सोच का...

------X-------

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 8:15pm

क्या बात है आदरणीय

बेहद प्रभावी अंदाज में मानसिकता को प्रस्तुत किया है आपने

जय हो

बधाई हो

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 7:53pm

संदेशप्रद रचना बधाई आपको । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 28, 2013 at 12:53pm

बहुत ही सशक्त चित्रण आदरणीय क्या प्रहार किया है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 10:27am

जिस तरह की मानसिकता को अभिव्यक्ति की विषय वस्तु बनाया गया है...वह तो किसी भी लग विचार को ग्रहण करने को तैयार ही नहीं होती... बहुत बारीकी से ऐसे कपाट बंद मस्तिष्क की बंजरता को शब्द मिले हैं..

हार्दिक बधाई 

Comment by विजय मिश्र on November 27, 2013 at 4:12pm
अकड़ की पकड़ होती ही कुछ ऐसी है कि मनुष्यत्व नपुंसक करदे ,नवीन विचारों का न जनमना तो छोटी बात है |कथ्य सुस्पष्ट है और चेताने वाली भाषा में है |बहुत सुंदर रचना |बधाई अजयजी
Comment by Saarthi Baidyanath on November 27, 2013 at 1:56pm

गज़ब है श्रीमान ...आपने जो कहना चाहा है ...सफलता से पाठक तक पहुँच रही है ! ..बेजोड़ कृति !

सुनने से ज़यादा , उनके लिए महत्वपूर्ण है 
देखना आवाज़ कि शकलो-सूरत 
और इस तरह नहीं ले पाते 
वे ' गोद ' किसी भी नए विचार को 
क्यूंकि ज़िद है उन्हें कि 
पैदा हो हर नया विचार 
उन्ही के भीतर से 
जिस से आगे बढ़ सके 
' वंश' 
उनकी नपुंसक सोच का.....

Comment by Arun Sri on November 27, 2013 at 12:45pm

मारक प्रहार किया आपने ! बहुत सशक्त !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2013 at 6:42pm

आदरणीय इस सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 26, 2013 at 2:26pm

आदरणीय , बहुत सुन्दत भाव अभिव्यक्ति , सुन्दर विचार !!!!! आपको बधाई !!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2013 at 12:27pm

अजय  कुमार जी

बड़ा अच्छा व्यंग्य  है आपका

बाँझ मस्तिष्क  में विचार नहीं आते  i बड़ी सुष्ठु योजना है  i

आपके भाव पसंद  आये i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service