For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनों नें जो मुझपर फेंका पत्थर है 

वो गैरों के फूलों से तो बेहतर है

 

दुनिया समझी थी वो कोई शायर है

जिसका दामन मेरे अश्कों से तर है

 

ऐ खुशियों तुम सावन बनकर मत आना

पिछली बारिश ने तोडा मेरा घर है

 

भूखा मंदिर जायेगा क्या पायेगा

रोटी बन पाता क्या संगेमरमर है

 

धरती सौ हिस्सों में बाँटो होगा क्या

पक्षी का तो आना जाना उड़कर है

 

चूल्हा जलने से रोको इस बस्ती में

इस बस्ती में आंधी आने का डर है

 

दुःख रेतीले पर्वत सा ढह जायेगा

अपना दिल भी तो तूफानों का घर है

 

भुवन निस्तेज

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 809

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 11:05am

आदरणीय सौरभ जी, मतले के उला में सामान्य परिवर्तन करने की कोशिश की है कृपया गौर फरमाये ...

यह पहले यूँ था 

अपने पथ में जो धारिला पत्थर है

वो गैरों के फूलों से तो बेहतर है

इसे अब 

अपनों नें जो मुझपर फेंका पत्थर है 

वो गैरों के फूलों से तो बेहतर है 

कर दिया है, कृपया इस पर अपनी राय देकर कृतार्थ करें....

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 10:50am

आदरणीय वीनस केसरी जी इस समीक्षा के लिए विशेष आभार, मैंने इस  ग़ज़ल में २२२२ २२२२ २२२ मात्रा ली हैऔर इसका  पालन मतले में भी किया है, मैं दुविधा में पड़ गया हूँ, कृपया मार्गदर्शन करें ............सादर..

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 1:20am

आदरणीय बृजेश नीरज जी इस ग़ज़ल पर मैंने २२२२ २२२२ २२२ की मात्रा ली है...सादर 

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 1:17am

आदरणीय shashi purwarannapurna bajpaicoontee mukerji Dr.Prachi Singh इस रचना पर दृष्टि डालने के लिए ह्रदय से आभारी हूँ... 

Comment by भुवन निस्तेज on April 17, 2014 at 1:14am

आदरणीय Shyam Narain Vermaगिरिराज भंडारीOmprakash Kshatriya स्नेह के लिए आभार....

Comment by Krishnasingh Pela on March 28, 2014 at 8:52am

अाँखिर इस मर्ज की दवा क्या है ? 

.........

/भूखा मंदिर जायेगा क्या पायेगा / या

/पक्षी का तो आना जाना उड़कर है/  

गजल के किसी मिसरे काे देखें ताे  २२ २२ २२ २२ २२२  या २२२२ २२२२ २२२ एेसी संरचना नजर अाती है । इस प्रकार गिन्ती करने पर मतले पर क्या दाेष है मैं समझ नहीं सका , कृपया क्षमा करें । हाँ हुस्ने मतला में 'दुनिया' शब्द काे २२ के रुप में प्रयाेग किया है जाे स्वीकार्य है  या नहीं तथा  तीसरे शेर में 'एे खुशियाें तुम' काे २२ २२ के रुप में लिखा जा सकता है या नहीं ? यह प्रश्न विचारणीय है ।  अन्तिम शेर में रदीफ 'हैं'बहुवचन में हाेने से दाेषपूर्ण माना जाएगा । 

मेरी अल्पबुद्धि से इतना ही समझ सका । अग्रजाें से निवेदन है कि हम पाठकाें का मार्ग दर्शन करने की कृपा करें । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 27, 2014 at 7:44pm

ऐ खुशियों तुम सावन बनकर मत आना

पिछली बारिश ने तोडा मेरा घर है

 

भूखा मंदिर जायेगा क्या पायेगा

रोटी बन पाता क्या संगेमरमर है

 

धरती सौ हिस्सों में बाँटो होगा क्या

पक्षी का तो आना जाना उड़कर है

उपरोक्त अशआर इस मंच के लिए उपलब्धि हैं आदरणीय भुवनजी. दिल से दाद कुूल करें.

वैसे इस मात्रिक ग़ज़ल के मतले का उला (पहली पंक्ति) बह्र में कैसे हआ, समझ नहीं पाया.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2014 at 9:20pm

धरती सौ हिस्सों में बाँटो होगा क्या

पक्षी का तो आना जाना उड़कर है...............वाह बहुत सुन्दर 

बधाई स्वीकारें 

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:12am

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ... हर शेर के लिए ढेरो दाद

तेवरदार अशआर अलग ही लुत्फ़ दे रहे हैं ...

बहर के हवाले से मतले पर फिर से गौर फरमाएं

Comment by Krishnasingh Pela on March 23, 2014 at 11:35pm

ऐ खुशियों तुम सावन बनकर मत आना

पिछली बारिश ने तोडा मेरा घर है

.............................

चूल्हा जलने से रोको इस बस्ती में

इस बस्ती में आंधी आने का डर है

क्या बात ! भुवन जी बधाइ हाे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service