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एक कुण्डलिया छंद --- गर्मी


फागुन बीता देखिये ,खिली चैत की धूप
सर्दी की मस्ती गई, झुलस रहा है रूप
झुलस रहा है रूप ,सुहाती है वैशाखी
धरती तपती खूब ,करे क्या मनुवा पाखी
होते सब बीमार ,बढ़ी मच्छर की भुन भुन ।
आगे जेठ अषाढ़ , कहाँ अब भीगा फागुन ॥..

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment by vijay nikore on April 26, 2014 at 6:52am

कुण्ड्लिया छंद अच्छा लगा। बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2014 at 11:04pm

बहुत सुन्दर 

मौसमी परिवर्तन को बहुत खूबसूरती से शब्दबद्ध किया है.... सुप्रवाहित छंद प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आ० अन्नपूर्णा जी 

Comment by वेदिका on April 20, 2014 at 12:07am
वाह दीदी! क्या खूब मेहनत की है आपने छंद पर! सुमधुर कुण्डलिया छंद बना है
हार्दिक बधाई!!
Comment by बृजेश नीरज on April 18, 2014 at 8:52am

अच्छी कुण्डलियाँ हैं. आपको बधाई!

कहन पर और काम करिए!

Comment by annapurna bajpai on April 17, 2014 at 3:56pm

आदरणीया मीना दी , आ0 लड़ी वाला जी , आ0 श्याम नारायण वर्मा जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by Shyam Narain Verma on April 16, 2014 at 5:21pm
सुन्दर कुंडलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई.........................
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 16, 2014 at 12:50pm

सुन्दर कुंडलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई आद अन्नपूर्णा बाजपेयी जी 

Comment by Meena Pathak on April 16, 2014 at 11:50am

बहुत सुन्दर कुण्डली छन्द .. बधाई

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