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सोच बदलेगी न जब तक.........अरुण कुमार निगम

संस्कारों की कमी से , मनचले होते रहेंगे
कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे.


दोष इसका दोष उसका मूल बातें गौण सारी
तालियाँ जब तक बजेंगी , चोंचले होते रहेंगे .


मौन धरने उग्र रैली , जल बुझेगी मोमबत्ती
आड़ में कुछ बाड़ में कुछ सामने होते रहेंगे .


आबकारी लाभकारी लाडला सुत है कमाऊ
और  भी  तो  रास्ते  हैं , फायदे  होते रहेंगे .


ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी
जानता  है  हर  दरिंदा , फैसले  होते  रहेंगे.


अश्क हैं घड़ियाल जैसे दाँत हाथी की तरह दो
रंग  गिरगिट सा  बदलते  वो  हरे  होते रहेंगे .


ठोस दावे ठोस वादे, ढोल-सी आवाज इनकी
सोच बदलेगी न जब तक,खोखले होते रहेंगे.

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 18, 2014 at 1:35am

आदरणीय अरुण भाईजी.. जिस बेफ़िक्र अंदाज़ में यह ग़ज़ल हुयी है वह आपकी सिद्धहस्तता की परिचायक है.
हर शेर मूल्यवान है मगर जिस शेर ने बहुत कुछ लपेट कर साझा किया है --
ये गवाही वो गवाही, है बहुत ही चाल धीमी
जानता  है  हर  दरिंदा , फैसले  होते  रहेंगे.

इस शेर के लिए विशेष बधाई. .

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 6:29pm
प्रिय अरुण जी , रचना बहुत ही सुन्दर है , इन समस्याओं से हम सब त्रस्त हैं , फिर वे कौन हैं जो सब जानते हुए , देखते हुए भी मस्त हैं , उनकों ये बताना ही होगा , हौसले कितने ही मजबूत क्यों न हों ,अच्छाई के लिए न हों तो तोड़ दिए जाते है . आपकी अनुमति की प्रत्याशा में ये पक्तियां आपकी ही बात को आगे बढ़ाते हुए , प्रस्तुत हैं -----
कौन सा बल है जो दबाया जा सकता नहीं
कौन सा सर है जो झुकाया जा सकता नहीं .
हार मन से मान ली , हौसले उनके बढ़ते रहे ,
संस्कार हों , विश्वास हो , इच्छा का सम्बल हो
कौन राक्षस है जिसको जीता जा सकता नहीं .
सस्नेह .
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on June 10, 2014 at 2:12pm

आदरणीय अरुण भाईजी,

व्यक्ति , परिवार , समाज , देश  , नेता , अफसर सभी का नैतिक पतन तेजी से हुआ है। और भोगना आम आदमी को है । कड़वी सच्चाई  बयां करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई  

Comment by vandana on June 10, 2014 at 5:50am

अश्क हैं घड़ियाल जैसे दाँत हाथी की तरह दो 
रंग  गिरगिट सा  बदलते  वो  हरे  होते रहेंगे .

शानदार ग़ज़ल आदरणीय सादर नमन 

Comment by coontee mukerji on June 8, 2014 at 3:53pm

संस्कारों की कमी से , मनचले होते रहेंगे
कुछ न बदलेगा जहां में , हादसे होते रहेंगे....सच है जबतक आदमी की मानसिकता सकारात्मक सोच में न बदले तो समाज में हादसे होते रहेंगे...आदरणीय ....सादर

Comment by vijay nikore on June 8, 2014 at 3:52am

सच्चाई से भरपूर आपकी रचना को दाद देता हूँ। बधाई।

Comment by savitamishra on June 7, 2014 at 6:32pm

सच्चाई बया कर दी आपने हर लाइन में ..बहुत खुबसुरत

Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 6:01pm

आदरणीय अरुण निगम जी , बहुत सुन्दर प्रस्तुति .. सादर बधाई 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 4:46pm

आदरणीय निगम जी ..बहुत ही उम्दा शेर ..वर्तमान पर्द्रिश्य पर शानदार कटाक्ष ..किसी शेर को बिशेष शेर कहना अन्य शेरो के साथ बेमानी होगा ..इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई सदर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2014 at 1:45pm

अश्क हैं घड़ियाल जैसे दाँत हाथी की तरह दो
रंग  गिरगिट सा  बदलते  वो  हरे  होते रहेंगे ..............बस यही सब कुछ चलता रहेगा,इस कटु सच्चाई को बयां करती रचना पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय अरुण जी

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