(१)
पिसते हरदम ही रहे , मन में पाले टीस
तुझको भी मौका मिला, तू भी ले अब पीस
तू भी ले अब पीस , बना कर खा ले रोटी
हम चालों के बीच , सदा चौसर की गोटी
पूछ रहा विश्वास , कहाँ बदला है मौसम
घुन गेहूँ के साथ , रहे हैं पिसते हरदम ||
(२)
बिल्ली है सम्मुख खड़ी , घंटी बाँधे कौन
एक अदद इस प्रश्न पर , सारे चूहे मौन
सारे चूहे मौन , घंटियाँ शंख बजाते
मजबूरी में नित्य , आरती सारे गाते
लिया सभी ने जान , दूर काफी है दिल्ली
घंटी बाँधे कौन , खड़ी सम्मुख है बिल्ली ||
(मौलिक और अप्रकाशित)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
Comment
भाई जी दो छन्द में, उचित कहे हैं बात
दिन ही में सपने दिखें, फिर क्यों जोहें रात
फिर क्यों जोहें रात, कमर कसना ही जीवन
भूल गये यह कथ्य, उधड़ती दीखी सीवन
उस पर दिल्ली मोह, बढ़ाने लगती खाई
संकेतों में कथ्य, बधाई मेरे भाई
इन प्रासंगिक छन्दों के लिए दिल से बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय अरुणभाईजी.
सादर
आदरणीय अरुण निगम जी
पूछ रहा विश्वास , कहाँ बदला है मौसम ..............बहुत ही सार्थक प्रश्न
घुन गेहूँ के साथ , रहे हैं पिसते हरदम ||
दूसरी कुण्डलिया की भी सहजता प्रभावित करती है
हार्दिक बधाई
सादर.
कुंडलियों में इशारा साफ़ है
दो पाटों के बीच पिसनेवाले
हम और आप हैं ..सादर!
आदरणीय अरुण भाई , बहुत दूर से निशाना लगाया है आपने और वो भी सटीक , अलग अलग दो सचाइयों पर बढ़िया व्यंग्य ! आपको दिली बधाइयाँ , दोनो कुंडलियों के लिये ॥
निगम जी नयी और पुरानी दोनों हीकुंडलिया आपने प्रस्तुत की i अभिव्यक्ति अच्छी है i लडीवाला जी बहुत दिनों से कुण्डलिया ही लिखते आ रहे है उनका अनुमोदन आपको प्राप्त ही है i आपको बधाई i
सुन्दर कुण्डलिया छंद रची है | वाह ! बहुत बहुत बधाई भाई श्री अरुण कुमार निगम जी -
चोसर की गोटी सदा, हम चालो की बीच
पकड़ न पाए चाल को,लेता सर को भीच
लेता सर को भीच, तभी प्रभु को याद करे
जब भी हो कोशिश, तभी प्रभु को भान रहे
दिया कर्म सन्देश, जिसे भी लेना अवसर
करे सतत अभ्यास, तभी जीते वह चोसर ||- लक्ष्मण
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