For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: जिंदगी जैसे परायी हो गयी.

पाँव में खुद के बिवाई हो गयी.

आदमी तेरी दुहाई हो गयी.

 

वायु पानी भी नहीं हैं शुद्ध अब,

सांस लेने में बुराई हो गयी.

 

बारिशों का दौर सूखा जा रहा.

मौसमों की लो रुषायी हो गयी.

 

आपदाएं रोज़ होतीं हर कहीं,

रुष्ट अब जैसे खुदाई हो गयी.

 

काट डाले पेड़ सब मासूम से,

जंगलों की तो सफाई हो गयी.

 

काटती है पैर खुद अपने भला,

देखिये आरी कसाई हो गयी.

 

पेड़ दिखते थे जहाँ पर गाँव में,

आज चिमनी लो हवाई हो गयी.

 

एक रोपे पौध दूजा काटता,

जिन्दगी जैसे परायी हो गयी.     

.

**हरिवल्लभ शर्मा दि. 29.09.2014

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 663

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by harivallabh sharma on October 7, 2014 at 2:21pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपने ग़ज़ल पर अनुमोदन दिया...लेखनी को संबल मिला , हार्दिक आभार .कृपया स्नेह बनाये रखें.

Comment by harivallabh sharma on October 7, 2014 at 2:19pm

आदरणीय Sulabh Agnihotri जी ग़ज़ल पर आपका उत्तम प्रतिसाद मिला हार्दिक आभार आपका.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2014 at 9:43pm

आदरणीय हरि वल्लभ भाई , बढ़िया ग़ज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ |

Comment by Sulabh Agnihotri on October 2, 2014 at 9:14pm

वायु पानी भी नहीं हैं शुद्ध अब,

सांस लेने में बुराई हो गयी.

वाह - वाह क्या बात है !

Comment by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 10:57pm

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी उत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु  आपका हार्दिक आभार.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 30, 2014 at 10:18pm

एक रोपे पौध दूजा काटता,

जिन्दगी जैसे परायी हो गयी.....वाह! .इस शेर पर विशेष रूप से बधाई आपको आदरणीय हरी जी

Comment by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 8:03pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra साहब आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार...कृपया स्नेह बनाये रखें.

Comment by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 8:00pm

आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी आपका हार्दिक आभार...स्नेह बनाये रखें..

Comment by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 7:58pm

आदरणीय Dr Vijay Shanker जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से निश्चित ही मनोबल बढाया है..हार्दिक आभार आपका...स्नेह बनाये रखें.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 30, 2014 at 5:52pm

पेड़ दिखते थे जहाँ पर गाँव में,

आज चिमनी लो हवाई हो गयी.

 

एक रोपे पौध दूजा काटता,

जिन्दगी जैसे परायी हो गयी.     आदरणीय हरिवल्लभ जी पर्यावरण के बिगड़े हालत दिखती शानदार ग़ज़ल ,,हर शेर उम्दा ..मेरी तरफ से हार्दिक बढ़ाए स्वीकार करें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service