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मेरी हाथ की वो किताब हो..........

जिसे उम्र भर मैं सुना किया ,
जिसे चुपके-चुपके पढा किया ,
मैं समझ सका न जिसे कभी ,
मेरी हाथ की वो किताब हो ।।


एक बाल था मिरी पलक का ,
जो छुपा रहा मिरी आँख में ,
मुझे जिसकी फिक्र न थी कभी ,
मेरी जिन्दगी का वो ख्वाब हो ।।


जो ठहर गयी मेरी फिक्र थी ,
जो सॅवर गया तेरा ख्याल था ,
जो उतर गयी मेरे दिल के आँगन में ,
वो ठण्डी छॉव हो ।।


तेरे इन्तजार का सिलसिला ,
कभी टूूटता तो मैं जानता ,
मुझे मिला क्या मैंने खो दिया ,
मेरी जिन्दगी का हिसाब हो ।।


तुझे भूलने से भी क्या मिला ,
मैने करके देखा है ये बहुत ,
वो जो जख्म दे के चला गया ,
मेरी आँख को , वो ही ख्वाब हो ।।

मेरे साथ-साथ चला किया ,
मेरी जिन्दगी बनके अजय
जिसे रख सका न सॅभाल कर ,
मिरी जिन्दगी का वो खिताब हो ।।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 5:52pm

आदरणीय अजय जी सुन्दर अभिव्यक्ति ... मैं समझ सका न जिसे कभी ,

मेरी हाथ की वो किताब हो ।।....हार्दिक बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 25, 2014 at 9:49am

आदरणीय अजय जी अच्छी रचना है सादर बधाई

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 25, 2014 at 9:14am

जो ठहर गयी मेरी फिक्र थी ,
जो सॅवर गया तेरा ख्याल था ,

वाह बहुत खूब नज़्म हुई है

Comment by ajay sharma on December 24, 2014 at 10:32pm

giriraj sir se hausala afzai ki mai to dhanya huya , laga ki kuch sarthak likha hai shayad 

Comment by ajay sharma on December 24, 2014 at 10:31pm

adarniya mithilesh ji se mutasir hokar kuch ban pada .....aap gunijano ko pasand aayi nawazishe 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 6:24pm
सुन्दर रचना । आपको हार्दिक बधाई।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 24, 2014 at 12:53pm

सुन्दर नज्म, बधाई .

Comment by somesh kumar on December 24, 2014 at 11:51am

नज्म ,ख्याल .गज़ल .गीत जो कुछ भी हो पर 

तेरा ख्याल मन को भा रहा 

तेरा गीत मैं  गुनगुना रहा 

तू बात ऐसी लिख रहा 

मैं तेरा होता जा रहा |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2014 at 10:51am

आदरणीय अजय भाई , बढिया ख्याल है , नज़्म के लिये बधाई ।

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