For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी पहली कोशिश

जिंदगी की कहानी सुनाता रहा

दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा

प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं

बात क्या थी जिगर में दबाता रहा

जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर

मुसकुरा कर  निगाहें चुराता रहा

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच में मैं बनाता रहा

मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा

जीतकर जो मुझे हारता ही रहा   

हारकर भी उसे मैं जिताता रहा

तू बताना “निधी”मैं गलत तो नहीं

मर्म मेरा मुझे क्यों सताता रहा 

निधि  

Views: 825

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 5:26pm

@गिरिराज भंडारी जी.. ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति का बहुत बहुत आभार .. अगली बार से ये गलती नहीं होगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 9:25am

आदरणीया निधि जी , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । बह्र ऊपर लिख देने से अन्य सीखने वालों को सहायता हो जाती है , संभव हो तो लिख दिया करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 14, 2015 at 9:11pm

पहली लेकिन शानदार कोशिश........

बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 14, 2015 at 8:51pm
मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा

वाह बहुत खूब ग़ज़ल कही है बढ़िया
Comment by Alok Mittal on March 14, 2015 at 4:04pm

वाह्ह्ह वाह्ह्ह बहुत सुंदर ग़ज़ल आपकी ...

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच में मैं बनाता रहा

मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा

जीतकर जो मुझे हारता ही रहा   

हारकर भी उसे मैं जिताता रहा....वाह्ह्ह शानदार

Comment by umesh katara on March 13, 2015 at 6:58pm

Nidhi Plus जी आपकी मेहनत और  जज्बे का ही प्रतिफल है ये रचना 
बहुत सुन्दर गजल हुयी हुयी है 
हर शेर लाजबाब है 

वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह
एक बार और वाहहहह

Comment by Nidhi Agrawal on March 13, 2015 at 4:31pm

शुक्रिया लक्ष्मण धामी जी आपकी प्रेरणा से सही होगा 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:22am

पहली कोशिश और वह भी इतनी उम्दा....अंजाम और भी बेहतरीन होते जायेंगे ...... ढेरों मुबारकबाद

Comment by Nidhi Agrawal on March 13, 2015 at 9:35am

आप सभी महानुभावों का बहुत बहुत आभार .. मैंने इस मंच पर अपनी अपनी रचना पहली बार पोस्ट की थी. 

फेसबुक के कुछ ग्रुप्स में रचनाएँ प्रस्तुत करती रही हूँ और जो कुछ सीखा है वहीँ सीखा. कोशिश जारी है 

इस मंच पर मुझे "ग़ज़ल की कक्षा" खींच लायी ताकि बहर के बारे में और अधिक सीख सकूँ. 

आप सभी मित्रों की समीक्षा प्रेरणा देती रहेगी इसी आशा में हूँ.. धन्यवाद् 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 7:54am

//प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं

बात क्या थी जिगर में दबाता रहा

मुफलिसी में न बन जो सके हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा//

आदरणीया निधि जी ये दो अश'आर बेहतरीन हैं दाद हाज़िर है कुबूल फरमायें

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service