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ग़ज़ल : जहां था अंधेरा घना जिंदगी का

122 122 122 122

जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का

वहीं से मिला रास्‍ता रोशनी का

 

सलीबें न बदली न बदले मसीहा

वही हाल है आज तक हर सदी का

 

सितारे फलक से न आये उतर कर

हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का

 

न तुम रो सके औ हमारी अना को

सहारा मिला आरज़ी ही खुशी का

समन्‍दर सुख़न के तलाशे बहुत से

ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का

 

पिया है वही जाम जो दे ख़ुदाई

न अहसां उठाया न बदला सलीका

 

यही चार दिन है यहीं जी सको तो

न अफसोस होगा कभी जि़ंदगी का

मौलिक एवं अप्रकाश्‍ाित

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Comment

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Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:55pm

आरणीय गिरिराज जी ग़ज़ल पर आपकी शिरकत और शेर पर इस्‍लाह से उत्‍हसाहित है हम आपका सुझाव पूरी तरह से सही है । किन्‍तु क्षमा सहित निवेदन करना चाहते है कि, हम जो विचार लेकर चल रहे है वह बदल जाएगा । आपके सुझाव अनुसार यही चार दिन जी ले तो कभी जिंदगी का अफसोस नहीं होगा । और हम ये कहना चाह रहे है कि इन चार दिन को यहीं इसी वर्तमान मे जी लिया जाए इस के आगे किसी स्‍वर्ग के प्रलोभन और नर्क के कथित भय से मुक्‍त हो कर जी लिया जाए । इस दृष्टि से भी कही जा सकती है बात । आशा है आप हमारी बात को समझ रहे है । आपकी विश्‍लेषणात्‍मक टिप्‍पणी से सदैव ही सोच को आयाम मिलता है और वह प्रतीक्षित रहती है । आशा है इसी प्रकार अनुग्रह बनाये रखेगें ।

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:46pm

आदरणीय डॉ . गोपाल नारायण जी आपका आर्शीवाद मिल गया लिखना सार्थक हो गया बहुत बहुत आभार आपका

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:45pm

आरणीय विजय जी आपको शेर पसंद आया लिखना सार्थक हुआ आभार आपका

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:45pm

आरणीय नरेन्द्र सिंह जी ग़जल पर आपकी उपस्थिति से खुशी हुई है धन्‍यवाद

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:44pm

आदरणीय दिनेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन के प्रति आश्‍वस्‍त हुए हम आभार

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:44pm

आदरणीय दिनेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन के प्रति आश्‍वस्‍त हुए हम आभार

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:43pm

आदरणीय मिथिलेश जी कई दिनों बाद लौटे है इस लिये विलंब से आपकी प्रति‍क्रिया का आभार दे पा रहे है । संभालते संभालते गलती हो ही गई :-) क्षमा । /// हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का ///से प्रतिस्‍थापित कर लिया है मूल आलेख को । आपकी हौसला आफजाई का शुक्रिया । सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2015 at 4:31pm

समन्‍दर सुख़न के तलाशे बहुत से

ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का-------------कमाल है .

Comment by vijay nikore on August 20, 2015 at 3:56pm

सभी शेर अच्छे लगे, विशेषकर निम्न...

//सलीबें न बदली न बदले मसीहा

वही हाल है आज तक हर सदी का\\

हार्दिक बधाई।

Comment by narendrasinh chauhan on August 20, 2015 at 12:35pm

जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का वहीं से मिला रास्‍ता रोशनी का 

सलीबें न बदली न बदले मसीहा वही हाल है आज तक हर सदी का

लाजवाब ग़ज़ल

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