For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : बना कर इक बड़ी लाइन

1222 1222 1222 1222

बना कर इक बड़ी लाइन कई बीमार बैठे हैं,
उन्हींके साथ में कितने यहां एमआर बैठे हैं।

न जाने सेल को किसकी नज़र ये लग गई यारब,
रिटेलर सब हमारी कोशिशों के पार बैठे हैं ।

ये जितने डाक्टर है सब मुझे जल्लाद लगते है,
मरीजो को दवा क्या दें लिए तलवार बैठे हैं।

मरीजे इश्क हैं सारे इन्हें मतलब नज़ारे से,
लिए आँखों में कब से हसरते दीदार बैठे हैं।

दुपहिया धूप में रक्खा उठा कर चल पड़े थे वो,
बयाँ के बाद की तकलीफ में सरकार बैठे हैं।

हमें खाली लिफ़ाफ़ा वो थमाकर देखिये खुद ही,
वलीमा खा गये कितने कई तैयार बैठे हैं ।

भला क्यों मुफ़्त का हर माल ग़ालिब को लगा अच्छा,
बतायें तो बड़े नक्काद जो हुशियार बैठे हैं ।

चुरा ली जूतियां मेरी किसी ने कल जो हुजरे से,
कसम से मिल वो जाये आज खाये खार बैठे हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 826

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 25, 2016 at 9:58pm

वाह्ह्ह  वाह्ह  क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है डॉक्टर पर आँखों के सामने चित्र सा बन गया पढ़ते पढ़ते क्या खूब कहा .बहुत मजेदार रोचक ग़ज़ल कही आ० रवि शुक्ल भैया दिल से दाद हाजिर है .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2016 at 6:37pm

आदरणीय रवि भाई , आपने शिज्जु भाई के दिल की बात कह दी है , मतले और एक शेर में । अच्छी गज़ल हुई है दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:57pm

आदरणीय शिज्‍जु भाई आप जानते हैै इसके कुछ शेर के पीछेे आप के अनुभ्‍ााव है और आपके साथ हुई चर्चा है । इसलिये सभी आदरणीय मित्रों की दाद ओ मुबारक बाद के आप भी हकदार है । और अगर कोई डाक्‍टर हमसे नाराज हो जाए तो उसमें भी साझेेदारी कर लीजियेगा ।  हा हा हा

आभार आपको हमारी ओर से । सादर 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:54pm

आदरणीय तसदीक अहमद जी आपकी गजल पर मौजूदगी खुशी का सबब है दाद पाकर अच्‍छा लगा बहुत बहुत धन्‍यवाद 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:53pm

आदरणीय समर कबीर साहब आदाब आपसे गजल पर दाद पाकर आश्‍वस्‍त हुए है । खिचांई का इरादा नहीं था बस शेर हो गये मजाहिया में कभी कभी बात बढ़ा चढ़ा कर कह दी जाती है । ये हमारा अनुभव है । हमारी गजल के बहाने से आपने एक खूबसूरत सा शेर मंच पर साझा किया उसके लिये और गजल पर आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बेहद  शुक्रिया । सादर । 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:50pm

आदरणीय ब्रजेश जी गजल पर आपकी उपस्थिति का धन्‍यवाद स्‍वीीकार करें 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:49pm

आदरणीय विजय जी गजल पसंद आई धन्‍यवाद स्‍वीकार करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 24, 2016 at 9:45pm
जय हो आदरणीय रवि शुक्ला जी खूब ग़ज़ल हुई है
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 24, 2016 at 7:30pm

मोहतरम  जनाब रवि शुक्ल    साहिब  , ' उन्हीं के साथ में कितने यहाँ एम आर बैठे हैं ;  बहुत खूब , आपने डॉक्टरों को बे पर्दा कर दिया
बेहतर ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं  

Comment by Samar kabeer on April 24, 2016 at 6:00pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,डॉक्टरों की अच्छी खिंचाई करदी आपने,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
आपकी ग़ज़ल सुनकर किसी पुरानी ग़ज़ल का मतला यद् आगया:-मुआफ़ कीजिये मतला नहीं शैर:-
"न छेड़ ऐ नकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियां सूझी हैं हम बेज़ार बैठे हैं" ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
3 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service