For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बैजनाथ शर्मा 'मिंटू' - सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगा

212 2112 2112 222

सू ए मंजिल तुझे हर हाल में जाना होगा|
आज तन्हा है तो कल साथ ज़माना होगा|

मैं तो दुश्मन हूँ भला पीठ पे कैसे मारूं
इस लिए दोस्त तुझे दोस्त बनाना होगा |

जाग उठते है मेरे मन में सवालात कई
हर किसी दर पे न अब सर को झुकाना होगा |

एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर
शर्त है ज़ख्म सब अपनों को दिखाना होगा|

फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखे हैं,
हर किसी को न यहाँ दोस्त बनाना होगा|

जिनकी ताबीर न मुमकिन हो कभी जीवन में
ऐसे सपने न कभी दिल में सजाना होगा |

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 618

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on February 3, 2017 at 9:56pm

आदरनीय बृजेश साहेब,...हौसला अफजाई के लिए ......बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on February 3, 2017 at 9:55pm

आदरनीय लक्ष्मण साहेब,....आपको मेरी ग़ज़ल पसंद आई ......बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on February 3, 2017 at 9:54pm

आदरनीय समर साहेब,....आपको मेरी ग़ज़ल पसंद आई ......बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on February 3, 2017 at 9:53pm

आदरनीय शिज्जू  साहेब,....बहुत बहुत शुक्रिया .... ग़ज़ल  पुन: देखता हूँ|

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on February 3, 2017 at 9:49pm

आदरनीय समर साहेब,....बहुत बहुत शुक्रिया .... मैं इस ग़ज़ल को पुन: देखता हूँ|

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 12:16pm

आ. बैजनाथ जी . सूंदर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई .

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 1, 2017 at 9:05pm
वाह आदरणीय बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 31, 2017 at 9:03pm
आ.बैजनाथ शर्मा'मिंटू'जी अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई आपको शेष समर साहब ने बता ही दिया है
Comment by Samar kabeer on January 30, 2017 at 10:14pm
जनाब बैजनाथ शर्मा'मिंटू'जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
दूसरे शैर में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें ।

"ऐसे सपने न कभी दिल में सजाना होगा"

इस मिसरे में एक वचन और बहुवचन का दोष है ,'ऐसे सपने' को "ऐसा सपना" करना होगा । दूसरी बात इस मिसरे में व्याकरण का दोष भी है यानि मिसरे में बात पूरी तरह साफ़ नहीं है ,यह बात इस तरह है :-

"ऐसे सपने तो कभी दिल में सजाया न करो"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का यह लिहाज इसलिए पसंद नहीं आया कि यह रचना आपकी प्रिया विधा…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी कुण्डलिया छंद की विषयवस्तु रोचक ही नहीं, व्यापक भी है. यह आयुबोध अक्सर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service