For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बुढ़ापा आ गया लेकिन समझदारी नहीं आई

बह्र - मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन

बुढ़ापा आ गया लेकिन समझदारी नहीं आई।
रहे बुद्धू के बुद्धू और हुशियारी नहीं आई।

किया ऐलान देने की मदद सरकार ने लेकिन
हमेशा की तरह इमदाद सरकारी नहीं आई।

पड़ोसी के जले घर खूब धू धू कर मगर
साहब,
खुदा का शुक्र मेरे घर मे चिंगारी नहीं आई।

ढिंढोरा देश भक्ति का भले ही हम नहीं पीटें,
मगर सच है लहू में अपने गद्दारी नहीं आई।

बहुत से लोग निन्दा रोग से बीमार हैं लेकिन
हमारे मन में ऐसी कोई बीमारी नहीं आई।

करोड़ों का घोटाला कर ये ताजिर भाग जाते हैं
मैं मुफलिस हूँ मग़र उन जैसी ऐयारी नहीं आई।

मौलिक एवं अप्रकाशित

 मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 3, 2018 at 9:33am

जनाब राम अवध साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

  1. शेर2 उला मिसरा सही नहीं हो पाया ,आप चाहें तो यूँ कर सकते हैं "किया एलान ही सरकार ने इमदाद का लेकिन --"मदद हैरत है अब तक कोई सरकारी नहीं आई। 
  2. आखरी शेर का सानी मिसरा यूँ करसकते हैं "गरीबों में मगर उन जैसी अय्यारी नहीं आई।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on March 2, 2018 at 8:35am

आ० लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 9:12pm

बहुत खूब..

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on March 1, 2018 at 2:13pm

आदर्णीय तेजवीर सिंह जी ग़ज़ल पसन्दगी और उत्साह वर्धन के लिये सादर आभार।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on March 1, 2018 at 2:11pm

आदर्णीय समर कबीर साहब जी मार्गदर्शन के लिये सादर आभार। आपके द्वारा दिये गये बहुमूल्य सुझाव के अनुसार ग़ज़ल में सुधार अवश्य करूँगा। पुन: धन्यवाद।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 1, 2018 at 12:42pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी।बेहतरीन गज़ल।

ढिंढोरा देश भक्ति का भले ही हम नहीं पीटें,
मगर सच है लहू में अपने गद्दारी नहीं आई।

Comment by Samar kabeer on February 28, 2018 at 10:11pm

जनाब राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के सानी मिसरे में 'और' शब्द की जगह "आप"  कर लें,मतले की सुंदरता बढ़ जायेगी ।

दूसरे शैर के ऊला मिसरे में शिल्प दोष है,इसे यूँ कर सकते हैं :-

'किये सरकार ने ऐलान तो इसके लिये लेकिन'

आख़री शैर के सानी मिसरे में 'मगर' की जगह "मुझे"करना उचित होगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service