For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसने बिखरे काग़ज़ों को .....संतोष

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

उसने बिखरे काग़ज़ों को छू के संदल कर दिया

इक अधूरी सी ग़ज़ल को यूँ मुकम्मल कर दिया

कुछ तो दीवाना था मैं पहले ही उसके इश्क़ में

उसने चिल्मन यूँ हटाई मुझको पागल कर दिया

उसके जलवों का करिश्मा था कि जिसने दोस्तो

सारी दुनिया को मेरी आँखों से ओझल कर दिया

मैं बहुत उलझा हुआ था ज़िन्दगी के फेर में

तूने मेरी जान लेकर मसअला हल कर दिया

उसने यूँ डाली इनायत की नज़र 'संतोष' पर

छीन कर हर इक ख़ुशी ग़म को मुसलसल कर दिया

#संतोष_खिरवड़कर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 851

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by santosh khirwadkar on July 3, 2018 at 11:05pm

हृदय से आभार आ. नीलम जी 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 2, 2018 at 3:34pm

आदरणीय संतोष जी, बहुत ही सुन्दर गजल के लिए मुबारकबाद स्वीकार करें । 

Comment by santosh khirwadkar on July 1, 2018 at 9:46pm

शुक्रिया आ. राज जी 

Comment by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 7:18pm

बहुत खूब जनाब संतोष जी. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें. 

मैं बहुत उलझा हुआ था ज़िन्दगी के फेर में

तूने मेरी जान लेकर मसअला हल कर दिया

क्या कहने, वाह वाह, सादर 

Comment by santosh khirwadkar on July 1, 2018 at 6:35pm

धन्यवाद आ.तेजवीर साहब 

Comment by santosh khirwadkar on July 1, 2018 at 6:32pm

नमस्कार गुरप्रीत जी, आप का तहेदिल से शुक्रिया

Comment by TEJ VEER SINGH on July 1, 2018 at 6:25pm

हार्दिक बधाई आदरणीय संतोष जी। लाज़वाब गज़ल।

मैं बहुत उलझा हुआ था ज़िन्दगी के फेर में

तूने मेरी जान लेकर मसअला हल कर दिया

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 1, 2018 at 3:37pm

जनाब संतोष जी ..नमस्कार ..आज आपकी ये ग़ज़ल पढ़ी ...ग़ज़ल बेहद पसंद आई ..बहुत ही शानदार अशआर कहे हैं आपने सभी के सभी ..इस ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई 

Comment by santosh khirwadkar on July 1, 2018 at 11:28am

हृदय से आभार आ. गुमनाम जी ..

Comment by santosh khirwadkar on July 1, 2018 at 11:27am

सलाम आ.आरिफ़ साहब...तहेदिल से शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service