अस्त व्यस्त -लघुकथा -
पैतीस वर्षीय गल्ला व्यापारी राजेश्वर को दिल का दौरा पड़ा।आनन फानन में चिकित्सालय पहुँचाया गया।
विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा गहन परीक्षण और उचित चिकित्सा के बाद घर भेज दिया मगर बहुत सारी हिदायतों के साथ।
उनके अनुसार दिल का दौरा हल्का था और समय पर चिकित्सा मिलने से खतरा टल गया है लेकिन जीवन भर सावधानी रखनी होगी।
सगे संबंधी, रिश्तेदार, मोहल्ले के लोग,मित्रों एवम व्यापारियों का ताँता लग गया।
हाल चाल जानने राजेश्वर के सत्तर वर्षीय नानाजी भी आये। वे शहर के सबसे बड़े व्यापारी और समाजसेवी थे। साथ ही वे राजेश्वर के लिये आदर्श और प्रेरणा श्रोत भी थे।वह भी उन्हीं के पद चिन्हों पर चल कर उन जैसा ही नाम कमाना चाहता था।
"राजेश्वर, यह कैसे हुआ? लगता है कि तुम मेरे दिशा निर्देशों का पालन नहीं करते।"
"नहीं नानाजी, ऐसा तो कुछ भी नहीं है?कुछ दिन से कार्य की अधिकता से व्यस्तता ज्यादा हो गयी थी।"
"यह सत्य नहीं है राजेश्वर।तुमसे अधिक कार्य करता हूँ।आयु भी तुमसे अधिक है।मगर फिर भी स्वस्थ हूँ।"
"नानाजी, यही सच है, अति व्यस्त होने से ही यह सब कुछ हुआ है।"
"यह सब व्यस्त होने से नहीं वलिक अस्त व्यस्त होने से हुआ है।मैं तुम्हारी जीवन शैली का उदाहरण स्पष्ट देख रहा हूँ।"
"नानाजी, आपका आशय क्या है मैं समझा नहीं?"
नानाजी ने एक अधखुले सूट्केस, जिसमें ठूंस ठूंस कर कपड़े बेतरतीब तरीके से भर रखे थे, की ओर इशारा करते हुए कहा,"यह तुम्हारा ही सूट्केस है ना, यह तुम्हारी ज़िंदगी के प्रति सोच को दिखा रहा है।"
"नानाजी, अभी भी मेरी समझ में कुछ नहीं आया?"
"राजेश्वर, तुमने अपने जीवन की तमाम समस्याओं को इन कपड़ों की भाँति बिना सुलझाये अपने अंदर समेट रखा है,जो तुम्हारे भीतर उथल पुथल मचा रही हैं।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, अच्छी लघुकथा का सृजन। बहुत बहुत बधाई.
हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी।
हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।
आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। बेहतरीन सीख देती लघुकथा के लिए हृदय तल से बधाई देता हूँ। सादर
बढ़िया संदेशप्रद लघु कथा आदरणीय..
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।आदाब।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
अस्त-व्यस्तता से उथल-पुथल ; आइने से रूबरू; दर्पण से साक्षात्कार वाया स्वस्थ्य स्तंभ नानाजान! बहुत बढ़िया कथ्य के साथ बढ़िया प्रेरक/बोध रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। मेरे विचार से शीर्षक कोई बेहतर भी हो सकता है और आरंभिक सात-आठ पंक्तियों को एक पंक्ति या सहज संवाद में समायोजित किया जा सकता है। सादर।
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