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ग़ज़ल - दिल मे भगवान का डर पैदा कर

2122 1122 22

आपने जुमलों में असर पैदा कर ।

कुछ तो जीने का हुनर पैदा कर ।।

दिल जलाने की अगर है ख्वाहिश ।

तू भी आंखों में शरर पैदा कर ।।

गर ज़रूरत है तुझे ख़िदमत की ।

मेरी बस्ती में नफ़र पैदा कर ।।

हर सदफ जिंदगी तो मांगेगी ।

इस तरह तू न गुहर पैदा कर ।।

देखता है वो तेरा जुल्मो सितम।

दिल में भगवान का डर पैदा कर ।।

अब तो सूरज से है तुझे खतरा ।

सह्न में कोई शजर पैदा कर ।।

तीरगी से है अदावत तेरी ।

शब ए पूनम सा क़मर पैदा कर ।।

देख लूं मैं तुझे भी जी भर के ।

या ख़ुदा मुझमें बसर पैदा कर ।।

बज्मे दिल से तू चला जायेगा ।

हिज्र के नाम ज़िगर पैदा कर ।।

स्याह ये रात गुजरनी मुश्किल ।

अपने दम पे तू सहर पैदा कर ।।

चाहतें मेरी समझने के लिए ।

ऐ सनम एक नज़र पैदा कर ।।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 21, 2019 at 1:15pm

जनाब नवीन साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

शेर 1_उला मिसरे में आपने की जगह अपने करलें

शेर 4_ ऊला मिसरा लय में नहीं है, यूँ कर सकते हैं "जिंदगी मांगेगी हर एक सद‌फ"

शेर 6_ऊला मिसरा बहर में नहीं है, यूँ कर सकते हैं "अब तो सूरज से है तुझको ख़तरा"

शेर 7_ सानी मिसरे में शब और पूनम में इज़ाफत सही नहीं है, यूँ कर सकते हैं, " चौदहवीं शब सा क़मर पैदा कर"

शेर 8_ ऊला मिसरा लय में नहीं है, यूँ कर सकते हैं," देख लूँ मैं भी तुझे जी भर के" सानी मिसरे में बसर की जगह

बशर कर लीजिए 

Comment by TEJ VEER SINGH on May 21, 2019 at 10:37am

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। बेहतरीन गज़ल।

देखता है वो तेरा जुल्मो सितम।

दिल में भगवान का डर पैदा कर ।।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 21, 2019 at 9:44am

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by नाथ सोनांचली on May 17, 2019 at 6:49pm

आद0 नवीन मणि त्रिपाठी जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई स्वीकार कीजिए

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