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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-58 (विषय: परिवर्तन)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-58 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-58
विषय: परिवर्तन
अवधि : 29-01-2020  से 30-01-2020 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं। 
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

बहुत बढ़िया ,सटीक लघुकथा है आ0 तेजवीर जी। बधाई स्वीकार करें ।

हार्दिक आभार आदरणीय कनक जी।

आ. भाई तेजवीर जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

हार्दिक आभार आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।

परिवर्तन को बहुत ही सहजता से व्यक्त करती इस बेहतरीन लघुकथा के लिए आप को हार्दिक बधाई।

समय के साथ स्त्री और पुरुष दोनो की प्राथमिकताओं का बदलना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। बच्चों के प्रति माँ का सरोकार किसी भी उम्र मे स्वार्थवश नहीं होता।बहरहाल हमेशा की तरह एक कसे हुए शिल्प की लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी।

  1. आदाब। ...वाह और आह! ग़ज़ब के ट्विस्ट दिये/हुए हैं रचना में। थोड़ी सी दाल से पूरी दाल वापसी... और फ़िर... बदल गये ..से.. नारी में नैसर्गिक या थोपे गये बदलाव और फिर समापन पंच-संवाद में बेटे में आये अनपेक्षित बदलाव की विचारोत्तेजक बात। बहुत ख़ूब। हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब। 

हाँ, एक बात ज़रूर.लगी.. कि स्त्री के बदलाव/सहारों  संबंधित बातें विचार पेश करने जैसा लगा। इन्हें बहुत कम शब्दों में कहा जाये, तो मुख्य प्रवाह अधिक प्रभावशाली हो सकेगा मेरे विचार से। सादर।

बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा 

लौट चलें
********
जब वो लौट कर आया तो बहुत दुखी था।
" शहर में घूमने गया था ना?क्या हुआ ?चेहरे पर मुर्दानगी क्यों है?" दोस्त ने पास आकर पूछा और फिर अपनी बात पर खुद ही हँस दिया।
"कुछ बचा ही नहीं है पहले वाला यार। सब बदल गया।सारे पेड़ कट गये। सब जगह धुआँ गाड़ियाँ बस ।"उसकी आवाज भर्राई थी।
"क्या कह रहा है!!" दोस्त ने अविश्वास जताया।
" हनुमान मंदिर वाली बगीची से लेकर पुरानी मजार तक सारे पेड़ कट गये और उनकी जगह आलीशान होटल खड़े हो गये।"
"इत्ते पैसे वाले कहाँ से आ गये हमारे छोटे से शहर में?" दोस्त का अविश्वास बरकरार था। 
"और सबसे आलीशान होटल के मालिक हैं रज्जन मियाँ और उनके पार्टनर हैं रामचन्दर पाण्डे जी।" 
" अब तो झूठ बोलना छोड़ दे यार। ये दोनो तो  कट्टर खिलाफ थे एक दूसरे के। याद है ना क्या क्या बोलते थे एक दूसरे के बारे में ।"दोस्त ने पहले की बात काट दी।
"सच कह रहा हूँ भाई। एक ने हमें उकसाया और दूसरे ने अपने लोगों को उकसाया ।फसाद करवा कर अपनी रोटीयाँ सेक लीं। आज  दोनो मिल कर ऐश कर रहे हैं और हम....।"उसकी आवाज फिर भर्रा गई।
" चल यार अंदर चलते हैं। यहाँ बाहर अब दम घुट रहा है।" दोस्त की आवाज भी भर्रा गई।
दोनो कुछ देर एक दूसरे का हाथ पकड़े रहे और फिर अपनी अपनी कब्र के अन्दर लौट गये।
*********************************************
मौलिक व अप्रकाशित

एक तीर से दो शिकार किये हैं इस लघुकथा में आ० प्रतिभा पाण्डेय जी. एक तो परस्पर विरोधी कट्टरवादियों की आपसी सांठगांठ और दूसरे प्रयावरण पर चिंता. लघुकथा प्रदत्त विषय से न्याय भी कर रही है और कसी व सधी हुई भी है जिससे इसका प्रभाव बहुगुणित हुआ है. इस अप्रतिम प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.   

आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आपने बहुत ही बढ़िया और सदी हुई लघुकथा कही है । आप को हार्दिक बधाई इस शानदार कथा के लिए।

हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय जी

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