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आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय साहिबा, आपकी बधाई और प्रोत्साहन के लिए हृदयतल से आपका आभारी हूँ।
एक यादगार की हिमायती इस लघुकथा हेतु आपको बधाई आ.भसीन जी।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, आपकी बधाई के लिए हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ।
मार्गदर्शन करती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा ,आदरणीय रवि सरजी।
अमानत
ब्याह में आई बेटियों की बिदाई की रस्म में पिता का सहयोग कर रेवती मम्मी के पास पहुंची। बेटियों की बिदाई में भी ना रोने वाली मम्मी बिलख बिलख कर रोये जा रही थी। दूरदराज के रिश्ते की आई बहु बेटियां भी उनको घण्टों से रोते देख भावविह्वल हो रही थी।
" मम्मी, कब तक रोयेंगी? "
बुआ बोलने लगी ," अरे ! ये तो पूछ क्यों रो रही हैं? किसने क्या बोला? तबियत खराब हो जाएगी । "
" बुआ ,वे दीदी के लिए रो रही हैं? यही सोच रही हैं कि वे होती तो , साड़ियों में से कौनसी लूं इसी बात पर उनका निर्णय ना हो पाता। फिर वे इनकी बड़ी बेटी थी और पहली संतान को कोई भूल पाता हैं क्या? "कहते हुए वह जाकर स्मृति को बुला लाई ।
" मम्मी , अब बस करिये रोना , दीदी अपनी अमानत की भी जिम्मेदारी आप पर छोड़ गई हैं।आपने क्यों नही सोचा की इस मासूम बच्ची की ख्वाहिश को आपके अलावा कौन पूरा कर सकता हैं। और यह अपने दिल की कहेगी भी तो किससे ? जो कुछ करना हैं, इसके लिये कीजिये।
थोड़ा रुककर ," आप इसकी मम्मी की मम्मी हैं ।फिर आपके रहते हुए यह मातृत्व विहीन क्यों रहे ? दीदी की तरह इसका बचपन भी तो आप ही को बकरार रखना हैं। "
मौलिक एवं अप्रकाशित
क्षमासहित निवेदन है कि मैं इस लघुकथा के अभीष्ट तक पहुँच नहीं पाया। शायद लघुकथा अस्पष्ट है अथवा मेरी अल्पबुद्धि। सादर
आ. रवि जी ,आपने कथा के लिए जो अमूल्य समय दिया उसके लिए आभारी हूँ। यह मेरी लिखी कथा हैं अतः इसकी कमी समझ पाने में असमर्थ हूँ लेकिन अस्पष्ट हैं इतना निश्चित हैं । इसकी कमियों हेतु मार्गदर्शन के लिए प्रतीक्षारत रहूंगी।पुनः आभार
आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी, सादर वंदन। ऐसा लग रहा है कि जल्दबाज़ी में टाइप करके पोस्ट कर दिया गया है। पात्र उलझा रहे हैं। संवाद गड्डमगड्ड हैं। मुझे जो कुछ समझ आया बस इतना कि नानी और नातिन के बीच कुछ बताना चाह रही हैं आप। शायद बच्ची कक माँ के गुजरने पर उसकी नानी को उसकीबड़ी बेटी की धरोहर रूप में रखकर उसका पोषण करने की बात आप कहना चाह रही हैं। यदि ऐसा भी है तो भी अस्पष्ट है। दूसरा यह प्रस्तुति अति सपाट होने के कारण भी प्रभाव छोड़ती प्रतीत न हुई। क्षमा सहित सादर
आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी, लघुकथा के सुंदर प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। क्षमासहित मैं आदरणीय रवि प्रभाकर साहिब से सहमत हूँ, अफ़साना समझने में थोड़ी कठिनाई महसूस हुई, दो-तीन बार पढ़ना पड़ा। मुझे लगता है ऐसा शायद इसलिए है कि छोटे से अफ़साने में कई चरित्र आ गए हैं। अगर लघुकथा ना होकर ये थोड़ी लम्बी कहानी हो, जिसमें आप परिस्थिति, भूमिका और पात्रों को स्पष्टा से पेश कर सकें तो यक़ीनन यह बेहतरीन कहानी बन सकती है।
आ. रवि भसीन शाहिद जी , आप द्वार दिए दोनो ही सुझाव पर प्रयासरत हूँ। आपका हार्दिक धन्यवाद।आशा हैं आप भविष्य में भी उत्कृष्ट मार्गदर्शन देते रहेंगे।सादर
आदरणीया रचना त्रिपाठी जी, कुछ बात बन नहीं रही, या यह कहे कि जो आप कहना चाह रही वो पाठक तक सम्प्रेषित नहीं हो पा रहा।
एक बार पुनः इसे देखे।
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