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आदरणीया नमिता जी, लघुकथा की सराहना हेतु आभार।
आदाब। "कम लिखो, विधागत उत्तम लिखो '' - को चरितार्थ करती विषय पर सार्थक, सटीक और बेहद उम्दा सारगर्भित लघुकथा से हमें लाभान्वित कराने के लिए हार्दिक आभार मुहतरम जनाब इंजी. गणेश जी बाग़ी साहिब। मिहनत स्पष्ट दिख रही है। बेहतरीन उम्दा शीर्षक से पाठक को आकर्षित करते हुए बेहतरीन आरंभ और अंत के साथ माँ और नौकरानी से किये गये सवाल और संवेदनाओं से भरे जवाब कथ्य सम्प्रेषण वास्तव में गागर में सागर है।
प्रिय शहज़ाद भाई, जब तक भाव प्राकृतिक रूप से मुझे उद्वेलित नहीं करते मैं कुछ लिख नहीं पाता, आपने लघुकथा के मर्म तक पहुंच कर टिप्पणी की है जिसके लिए मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. सादर।
जी, ऐसा ही लघुकथा लेखन हम सब सीखना चाहते हैं। शुक्रिया।
आपकी सहिर्दयता को सलाम है शहज़ाद भाई जी।
रिश्ते भले ही खून के न हों, लेकिन कहीं-न-कहीं किन्हीं मर्यादायों से अवश्य बंधे होते हैंl इस लघुकथा में भी मालकिन और नौकरानी का रिश्ता कुछ ऐसा ही हैl दोनों ही अंदर से इस बात के लिए एहसानमंद हैं कि मुसीबत के समय वे एक-दूसरे के काम आए थेl आपकी यह लघुकथा मुझे बहुत पसंद आई भाई गणेश बाग़ी जी, जिस हेतु मेरी दिली बधाई प्रेषित हैl
आदरणीय गुरुदेव योगराज प्रभाकर जी, आपकी प्रथम दृष्टि में ही लघुकथा का उत्तीर्ण हो जाना एक उपलब्धि है, बहुत बहुत आभार।
दोनों के बीच के लगाव से उत्पन्न स्थिति वाकई सराहनीय है।एक अच्छी लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय बागी जी।
सराहना हेतु दिल से आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी.
उम्दा कथा आ. गणेश बागी जी , आपने एक पुराने समय को कथा द्वारा जीवित कर दिया। एक समय था जब पुरानी नौकरानी साधिकार घर आई नई बहुओं का भी मार्गदर्शन करती थी।हार्दिक बधाई आपको
उत्साहवर्धन करती समीक्षात्मक प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी।
आदरणीय बागी सर, एक सशक्त लघुकथा हुई है। सादर बधाई।
मर्यादा का महीन किन्तु मजबूत धागा में कैसी मर्यादा है, यह मैं समझ नहीं पा रहा। सँभवतः मर्यादा शब्द के व्यापक अर्थों का ज्ञान मुझे नहीं है। सादर
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