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आदरणीय बोगेवाल साहब, सुन्दर कथानक के साथ लघुकथा पर बेहतर प्रयास है. बधाई आपको।
आदरनीय गणेश भाई जी , सुंदर लघुकथा के लिए बधाई हो
सराहना हेतु आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।
इस सद्प्रयास के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।
लघुकथा : अन्योन्याश्रय
अक्सर मेरी नींद उनकी किचकिच की आवाज़ों से ही टूटती थी। मेरी मकान मालकिन जिन्हें हम लोग माँ जी कहते हैं, और उनकी हमउम्र नौकरानी लगभग रोज़ ही पता नहीं किस बात पर तू-तू - मैं-मैं कर लेती थी ।
आज जब वह नौकरानी माँ जी के घर काम निपटाकर मेरे कमरे में सफ़ाई करने आई, तो मैंने उससे पूछ ही लिया,
"आपसे माँ जी रोज़ रोज़ चिकचिक करती हैं, उनके यहाँ काम छोड़ क्यों नहीं देती ? क्या काम की कमी है ?"
"न बाबू, काम की कोई कमी नहीं हैl अब तो मेरा बेटा भी कमाने लगा है, किंतु इतने वर्षों में न जाने क्या हो गया है कि मैं उनके बग़ैर रह ही नहीं सकती, एक तरह से मेरे बच्चों का पालन-पोषण उन्होंने ही किया है।"
नौकरानी के जाने के बाद मैंने माँ जी से भी पूछ ही लिया,
"माँ जी, आप उस नौकरानी से रोज़ कहासुनी करती हैं, उसे निकाल क्यों नहीं देती।"
"न हो, वह जैसी भी है बहुत अच्छी है, जब मलिकार का स्वर्गवास हुआ था तो एक यही थी जिसने मेरा साथ दिया, मैं इसे नहीं निकाल सकती। वो अलग बात है कि वह मुझे छोड़ जाए।"
उन दोनों के हृदय में परस्पर मर्यादा का वो महीन किंतु मज़बूत धागा, मैंने पहली बार महसूस किया।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आदरनीय गणेश जी , बहुत ही अच्छी लघुकथा , अब तो ऐसा रिश्ता ही निभेगा , जिस तरह का माहौल बन रहा है
सराहना हेतु हृदय से आभार आदरणीय बेगोवाल साहब।
हार्दिक बधाई आदरणीय इं गणेश जी बागी जी। बेहतरीन लघुकथा।आपने प्रदत्त विषय मर्यादा को बहुत ही मर्यादित तरीके से विश्लेषित कर दिया।जो नौकर पुराने हो जाते हैं वे लगभग परिवार के सदस्य की तरह ही स्थापित हो जाते हैं और उनका व्यवहार भी काफी कुछ उसी तरह का हो जाता है। उनको निकालना भी कठिन होता है क्योंकि उनसे एक भावनात्मक रिश्ता जुड़ जाता है।लाज़वाब कथानक।
बहुत बहुत आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपने मेरी लघुकथा को संभाल लिया।
आ. भाई गणेष जी बागी जी, बेहतरीन कथा हुई हैै । हार्दिक बधाई।
दिल से धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी.
बेहतरीन कथानक। मर्यादा को एक नए ढंग से संप्रेषित किया है, आपने। हमारी सोच को भी नई दिशा मिली।
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