आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-123
विषय - "नई सुबह"
आयोजन अवधि- 09 जनवरी 2021, दिन शनिवार से 10 जनवरी 2021, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 09 जनवरी 2021, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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हार्दिक आभार आदरणीय
आदरणीया प्रतिभा पंडे जी सादर प्रणाम बहुत ही आकर्षक मुक्तक जीवन्त भाव वाह बधाई कुबूल कीजिए
हार्दिक आभार आदरणीय डाॅ छोटेलाल सिंह जी
तीन मुक्तक
(1)
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गम न कर ये अँधेरा भी मिट जायेगा ऐतबार कर,
आयेगी खुशियों की नई सुबह थोड़ा इंतजार कर,
चांद का चमकना व सूरज का उगना अभी बाकी है,
मिटेंगे गम, महकेगा चमन इस सुबह का सत्कार कर।
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(2)
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आस लगाये है खुशियों की कोई नई सुबह लाये,
देख कर जिसे चेहरे पर सभी के बहार आ जाये,
बात समझो यारों मुफ्त में कोई खुशी मिलती नहीं,
कर्म करो ऐसा खुशियों की सुबह खुद ही चली आये।
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(3)
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प्यार में तेरे किसे क्या मिला अब तो कुछ विचार करो,
किसने क्या खोया किसने क्या पाया सोच विचार करो,
आह आँसू करवटें या प्रतीक्षा के सिवाय क्या मिला,
नई सुबह खुशियां लाई अब तो सब पर उपकार करो।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी
आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन । अच्छे मुक्तक हुए हैं । हार्दिक बधाई।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय दयाराम मेठानी जी, प्रदत्त विषय पर शानदार मुक्तक सृजन। हार्दिक बधाई।
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय दयाराम मथानी जी सादर अभिवादन एक से बढ़कर एक शानदार मुक्तक पढ़कर मन आह्लादित हुआ सादर बधाई कुबूल कीजिए
नई सुबह
नई सुबह लेकर आयी है, जीवन में खुशहाली
दीपित हो विस्तीर्ण जगत ये, झूम रही हर डाली
अमल-कमल दल सुरभित होते, दिनकर के आने से
हास-हुलास मधुप सब करते, गुन- गुन-गुन गाने से
अवनि और अम्बर चहुँ दिशि में, अमंद किरणें छायीं
नव पराग नित भरकर कलियाँ, रस छलकाने आयीं
नभ में यत्र-तत्र घन-शावक, शोभित अरुणाई से
चमक उठे भगवान भास्कर, अपनी तरुणाई से
खग-मृग मीठे बोल सुनाकर, जीवन को हर्षाते
नव किसलय उत्फुल्ल प्रभा से, मधुमय जगत बनाते
नव्य-मधुर-मनमोहक बेला, मन उल्लास जगाती
अपनापन ले नई सुबह नित, सबको राह दिखाती
नहीं अकिंचनता लक्षित हो, जीवन के कोने में
हिमजल हास नहीं खो देना, हरपल ही सोने में
नयी उमंगें नयी तरंगे, दिल में सदा जगाओ
निखिल विश्व मंगलमय होवे, नई चेतना लाओ
मौलिक एवं अप्रकाशित
नयी उमंगें नयी तरंगे, दिल में सदा जगाओ
निखिल विश्व मंगलमय होवे, नई चेतना लाओ.............अति सुंदर सृजन के लिए आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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