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अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

2122   2122   2122   212

इक न इक दिन आपसे जब सामना हो जाएगा ।
जो भरम दिल में बचा है खुद रिहा हो जाएगा ।

इतने बुत मौजूद है तेरे खुदा के भेष में,
सजदा करते-करते तू खुद से जुदा हो जाएगा ।

सब पुराने पेड़ों को गर काट दोगे तुम यूं ही,
घर सलामत भी रहा तो लापता हो जाएगा।

ढूंढना अब छोड़ दे उस तक पहुँच का रास्ता,
खुद को पाले तो तू खुद ही रास्ता हो जाएगा ।

छोड़ दूँ शेरों सुखन और तेरी यादों का सफर ,
ऐसा करने से तो खुद से फ़ासला हो जाएगा।

रख किसी मायूम के हाथों पर अपना हाथ तू ,
इन लकीरों में जमा लावा हिना हो जाएगा ।

नींव के पत्थर हिलाने से बिखर जाता है घर ,
आपसे किसने कहा माज़ी नया हो जाएगा।

खूबसूरत वक्त की पहचान इतनी है फ़क़त,
गिरते ही उठने का तुझको हौसला हो जाएगा ।

उसकी कुदरत ने ठिकाने ला दिया सबको यहाँ ,
कोई कहता था ख़ुदा वो दूसरा हो जाएगा ।

मुझको इन ग़ज़लों में दिल के राज लिखने थे कईं ,
डर है लेकिन मेरा चेहरा बदनुमा हो जाएगा ।

अब वफ़ादारी का मतलब ये है बस मेरे लिए,
तुझपे लब खोले बिना शायर फना हो जाएगा ।

वो मेरा बेहद करीबी है मगर मैं क्या करूं ,
भीड़ में उसको पुकारूं तो खफा हो जाएगा ।

आपने वा वाह कहा इतना बहुत है दोस्तों ,
कोई मिसरा फिर कभी बिल्कुल नया हो जाएगा ।

इतना भी मासूम होने का दिखावा मत करो ,
इक जरा सी चोट से सब कुछ बयां हो जाएगा ।

आपसे "अहसास" बिल्कुल दूर है तो इसलिए ,
आपका रंगीन मौसम में बेमज़ा हो जाएगा।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 16, 2021 at 9:08am

बढ़िया कहा भाई मनोज जी...बधाई कुबूल करें...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 11, 2021 at 12:33pm

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। जनाब लक्ष्मण धामी जी से सहमत हूँ उनकी इस्लाह पर ग़ौर कीजियेगा।

'इक न इक दिन आपसे जब सामना हो जाएगा' इस मिसरे की शुरुआत यूँ करना बहतर होगा - उसका इक दिन... 

'आपसे "अहसास" बिल्कुल दूर है तो इसलिए ,

आपका रंगीन मौसम में बेमज़ा हो जाएगा।      इस शे'र का शिल्प कसावट चाहता है, इसे यूंँ कह सकते हैं-

"आपको अहसास गर कुछ भी कहीं होता नहीं 

 फिर तो ये रंगीन मौसम बेमज़ा हो जाएगा"      सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2021 at 11:21am

आ. भाई मनोज जी सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

/छोड़ दूँ शेरों सुखन और तेरी यादों का सफर/ में शेर - ओ-सुखन(शेरोसुखन) कर लें।
/रख किसी मायूम के हाथों पर अपना हाथ तू /में
मुझे मायूम का अर्थ समझ नहीं आया। कहीं मासूम तो नहीं ।

/आपने वा वाह कहा इतना बहुत है दोस्तों/ में मेरे हिसाब से 'वाह वाह' ही होना चाहिए । शेष भाई समर जी का इंतजार कीजिए।

/आपका रंगीन मौसम में बेमज़ा हो जाएगा।//इसमें "में "अतिरिक्त है । देखिएगा।

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