आदरणीय साथियो,
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आदाब। विषयांतर्गत आकर्षण के दोनों पक्षों सकारात्मक और नकारात्मक को उभारती रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। आपसे बेहतर और बेहतरीन रचनायें भी चाहिए न।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी।
जनाब तेज वीर साहिब, प्रदत्त विषय पर शानदार लघुकथा हुई है, मुबारक बाद कुबूल फरमाएं
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहेब जी। आप लघुकथा के मर्म तक पहुँच पाये।बहुत बहुत शुक्रिया।
बुढ़ापा
प्यासी धरती से बोझिल बादल की नजरें मिली। नेह सूचित हुआ। धरा रोमांचित हुई। बादल द्रवित हो बरस गया।धरती नहाई।प्रफुल्लित हुई।अब बदल गाहे -बेगहे बरसने लगा। धरा भी बरसने देती।
धीरे -धीरे धरा की देह के इर्द -गिर्द संचित जल उसे काटने लगा। वह चिढी,पर बादल बरसने को आमादा रहता।धरती अब उसे छिटक देती,' इतना मत बरसो।अब बरसो ही नहीं।उमर हो गई है।'
'उमर की छोड़ो।बरसने दो। नहाओ। जल जीवन है। संजो लो इसे।'
'क्या नहाऊं? सागर का खारा पानी अब काटता है। छुवन चुभती है।'
'क्षितिज तक मैं तुम्हे अपनी बांहों में समेटे हूं।खारापन तुम्हे अब छू नहीं सकता।काटेगा क्या?'
'मुझे लज्जा आती है।लोग आंखें फाड़ फाड़कर निहार रहे हैं।अपने बुढ़ापे का कुछ तो लिहाज करो।'
'तुम हरी -भरी हो तो मैं भला बूढ़ा हो सकता हूं?कहो तो बरस के दिखाऊं।'
'धत्त!कुछ तो शर्म करो।'कहते हुए धरती ने आंखे मूंद ली।
धरती के ऊपर धनुषाकार झुका हुआ बादल उसे निर्निमेष निहार रहा था।सोचता था,'कब धरा टेरे और बरस जाऊं।बुढ़ापे का दाग धूल जाए'
'मौलिक और अप्रकाशित '
आ. भाई मनन कुमार जी, सादर अभिवादन। विषयानुसार सुन्दर लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई।
आभार आ. लक्ष्मण जी।
आदाब। वाह... एक कथ्य से कई निशाने। आपकी विशिष्ट शैली व शिल्प में.बेहतरीन बिम्बों में दिलचस्प, किंतु गंभीर प्रतीकात्मक लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। शीर्षक भी प्रतीकात्मक हो सकता था।
आभार आ.उस्मानी जी।
चुनाव
सरकारी नौकरी ...... पक्की .. समयबद्ध प्रोन्नति... एक बार घुस जाएं आप किसी विभाग में ...आजीवन मस्ती...सेवानिवृत्त होने पर पैंशन जीवित रहते स्वयं...मरणोपरांत नामित !
प्राइवेट / किसी कम्पनी में नियुक्ति...केवल योग्यता..स्थायी फिर भी कच्ची..प्रोन्नति ..कार्य के प्रति समर्पण लेकिन अपेक्षाकृत बहुत शीघ्र..एक दशक हुआ नहीं आप शीर्ष पर ...
अभिषेक बी टेक ( पेट्रोलियम ) ओ. एन.जी.सी. और गैर सरकारी रिलायंस इंडिया दोनों ही के नियुक्ति पत्र सप्ताह समाप्त होते प्राप्त कर चुका था !
माता पिता ओ.एन.जी.सी. लेकिन वह और उसके मित्र रिलायंस इंडिया के पक्ष में थे। माता पिता का मानना भी सही था क्योंकि अभिषेक की दो बहने अभी कुंवारी थी और पिता सेवानिवृत्त हो चुके थे ।
कल सुबह ज्वाईन करना था। रात भर द्वन्द रहा । सुबह सरकारी नौकरी ज्वाईन कर ली ।
मौलिक व अप्रकाशित
सादर नमस्कार। आपकी शैली की इन रचनाओं से लघुकथागत बहुत सी खामियों का संज्ञान स्वतः होता रहता है। आकर्षण को बढ़िया आयाम दिया है आपने। हार्दिक बधाई आदरणीय चेतन प्रकाश जी।
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