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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-84

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-84 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। हमारे आसपास बहुत कुछ घटित होता रहता है. उनमे से बहुत कुछ ऐसा भी होता है जो हमारी लघुकथा का कथानक बन सकता है। इस 'आसपास' का दायरा बहुत ही विशाल है। इसमें घर, परिवार, आस-पड़ोस, कार्यालय, आपसी नोक-झोंक, स्नेह, राजनीति, संघर्ष दुःख-सुख आदि शामिल होते हैं. तो आइए इस विषय के किसी भी बिंदु पर एक सार्थक लघुकथा लिखकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-84
"विषय: 'आसपास'
अवधि : 30-03-2022  से 31-03-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीया नयना जी, बहुत बढ़िया लघुकथा। हार्दिक बधाई आपको। सादर।

लघुकथा अच्छी है, मगर इससे कहीं अच्छी बन सकती है. इसे और कसने का प्रयास करें और मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें नयना ताई.

अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीया नयना ताई | बधाई स्वीकारें| 

             प्रतिदान 

कई  साल  बाद  हरपाल  अपनी  बहन  के घर  आया  था।  माँ-बाप  बचपन  में ही स्वर्ग सिधार  गये  थे। बहन यशोदा  की  शादी  भी चाचा  राम पाल ने  की थी  ! लेकिन हरपाल अनब्याहा  रह गया। कारण  बना हरपाल का आवारागर्द होना।  यशोदा  के ब्याह जाने के बाद वैसे भी बहुत अकेला  रह गया था और  सोहबत  मिली भी  खराब......चोर-उचक्कों की । जीजा  को  यह सब पता चला  तो प्रथम आगमन  पर ही दुत्कार  दिया  था  उसे  । 

 आज सुबह  उसने ट्रेन  पकड़ी  और रात होते -होते  बहन के यहाँ आ पहुँचा । जीजा  सुखराम  से छुपा,  खाना  खिलाकर  यशोदा ने हरपाल को  नौकर के साथ सुला कर वह खुद भी सो गई।  सुबह  नौकर  ने  ढोरों की  सानी करने  के लिए  नाद ( पीतल का बड़ा बर्तन) की तलाश  की तो पाया बराबर  की चारपाई  पर हरपाल भी नहीं  था। 

मौलिक व अप्रकाशित 

बेचारी बहना। इस प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय

आदरणीय चेतन जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।

प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें आ० चेतन प्रकाश जी. 

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय चेतन प्रकाश जी | 

बेघर

सड़क के बीचो-बीच गायों का झुण्ड बैठा था| सड़क के दोनों तरफ से गाड़ियाँ दौड़ रही थीं| रात के समय में गाड़ी की हेडलाइट की रौशनी उनकी आँखों को चुन्धियाँ रही थी ऐसे में एक गाय ने दूसरी गाय से कहा, "क्या तुमको याद है, ऐसे एक हेडलाइट रौशनी के कारण पिछले हफ्ते अपने एक साथी गाय के बछड़े की मृत्यु हो गयी और साथ में...!"

दूसरी गाय ने उसकी बात काटते हुए कहा, "वह दृश्य मैं भुलाए नहीं भूल सकती! उस दिन दो बच्चो की लाशों के साक्षी बनना पडा था| मोटरसाइकिल सवार जो तेज़ रफ़्तार से अपनी बाईक चला रहा था, वह भी तो पलटकर गिर पडा था, और वह भी सड़क पर घिसटता हुआ उस पार गिर गया था |"

पहली गाय ने कहा, "हाँ ! उस दिन उसकी भी मृत्यु हो गयी थी पर मेरा मन आज दूसरी बात से दुखी हो रहा है!"

"वो क्या है?"

"हम बेघर हो गये हैं! जब तक हम काम आती रहीं हमारा ध्यान रखा गया और हम जैसी ही बूढ़ी हो गयीं हमको आवारा पशुओं की श्रेणी में खडा कर दिया गया | कितने स्वार्थी है मानव ..."

"यह तुम किसकी शिकायत कर रही हो? ये प्रजाति तो अपने ही प्रजाति के बुज़ुर्ग लोगों को...तो अपन तो पशु हैं...!" 

तभी चर्र्र्रर की आवाज़ आई, दोनों गायों की नज़रे पुनः चलती हुई सडको पर दौड़ती हुई गाड़ियों की ओर ...

मौलिक, अप्रकाशित एवं अप्रसारित 

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