आदरणीय साथियो,
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आदरणीया नयना जी, बहुत बढ़िया लघुकथा। हार्दिक बधाई आपको। सादर।
लघुकथा अच्छी है, मगर इससे कहीं अच्छी बन सकती है. इसे और कसने का प्रयास करें और मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें नयना ताई.
अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीया नयना ताई | बधाई स्वीकारें|
प्रतिदान
कई साल बाद हरपाल अपनी बहन के घर आया था। माँ-बाप बचपन में ही स्वर्ग सिधार गये थे। बहन यशोदा की शादी भी चाचा राम पाल ने की थी ! लेकिन हरपाल अनब्याहा रह गया। कारण बना हरपाल का आवारागर्द होना। यशोदा के ब्याह जाने के बाद वैसे भी बहुत अकेला रह गया था और सोहबत मिली भी खराब......चोर-उचक्कों की । जीजा को यह सब पता चला तो प्रथम आगमन पर ही दुत्कार दिया था उसे ।
आज सुबह उसने ट्रेन पकड़ी और रात होते -होते बहन के यहाँ आ पहुँचा । जीजा सुखराम से छुपा, खाना खिलाकर यशोदा ने हरपाल को नौकर के साथ सुला कर वह खुद भी सो गई। सुबह नौकर ने ढोरों की सानी करने के लिए नाद ( पीतल का बड़ा बर्तन) की तलाश की तो पाया बराबर की चारपाई पर हरपाल भी नहीं था।
मौलिक व अप्रकाशित
बेचारी बहना। इस प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय
आदरणीय चेतन जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।
प्रदत्त विषय पर लघुकथा कहने का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें आ० चेतन प्रकाश जी.
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय चेतन प्रकाश जी |
बेघर
सड़क के बीचो-बीच गायों का झुण्ड बैठा था| सड़क के दोनों तरफ से गाड़ियाँ दौड़ रही थीं| रात के समय में गाड़ी की हेडलाइट की रौशनी उनकी आँखों को चुन्धियाँ रही थी ऐसे में एक गाय ने दूसरी गाय से कहा, "क्या तुमको याद है, ऐसे एक हेडलाइट रौशनी के कारण पिछले हफ्ते अपने एक साथी गाय के बछड़े की मृत्यु हो गयी और साथ में...!"
दूसरी गाय ने उसकी बात काटते हुए कहा, "वह दृश्य मैं भुलाए नहीं भूल सकती! उस दिन दो बच्चो की लाशों के साक्षी बनना पडा था| मोटरसाइकिल सवार जो तेज़ रफ़्तार से अपनी बाईक चला रहा था, वह भी तो पलटकर गिर पडा था, और वह भी सड़क पर घिसटता हुआ उस पार गिर गया था |"
पहली गाय ने कहा, "हाँ ! उस दिन उसकी भी मृत्यु हो गयी थी पर मेरा मन आज दूसरी बात से दुखी हो रहा है!"
"वो क्या है?"
"हम बेघर हो गये हैं! जब तक हम काम आती रहीं हमारा ध्यान रखा गया और हम जैसी ही बूढ़ी हो गयीं हमको आवारा पशुओं की श्रेणी में खडा कर दिया गया | कितने स्वार्थी है मानव ..."
"यह तुम किसकी शिकायत कर रही हो? ये प्रजाति तो अपने ही प्रजाति के बुज़ुर्ग लोगों को...तो अपन तो पशु हैं...!"
तभी चर्र्र्रर की आवाज़ आई, दोनों गायों की नज़रे पुनः चलती हुई सडको पर दौड़ती हुई गाड़ियों की ओर ...
मौलिक, अप्रकाशित एवं अप्रसारित
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