For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय मित्रों !

सर्वप्रथम "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-३ की अपार सफलता के लिए आप सभी मित्रों को हृदय से बधाई ! जहाँ पर आप सभी के सहयोग से ओ बी ओ के सारे कीर्तिमान ध्वस्त हो सके हैं !

आप सभी का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत है ! आज के इस चित्र में जहाँ एक ओर आधुनिक भारत का वर्तमान स्वरुप दिखाई दे रहा है तो वहीं दूसरी ओर खेत में काम करे हुए किसान का परिवार आज भी पचास साल पहले वाली स्थिति में ही काम कर रहा है फिर भी यह किसान परिवार प्रसन्न दिख रहा है और अपने कार्य में पूरे मनोयोग से व्यस्त है |  यह तो सच है कि हमनें जो आज इतनी तरक्की की है उसके पीछे हमारी लगन मेहनत व कार्यनिष्ठा ही है परन्तु वास्तव में यदि देखा जाय तो इस सम्बन्ध में हमारे देश के  किसानों का योगदान कहीं से भी कम नहीं है क्योंकि इन्होनें ही अपना खून पसीना बहाकर हमारे पेट की क्षुधा को शांत करने के पूरे प्रबंध किये हैं ...हमनें तो अपनी आवश्यकतानुसार बहुत सी आधुनिक सुख-सुविधाएँ जुटा लीं हैं परन्तु यह बेचारें क्या करें ......इन्हें तो ठीक से दो वक्त का भोजन तक नसीब नहीं हो पाता है ...हमारी सरकार भी बेचारे किसान-मजदूर को पूरे वर्ष में मात्र १०० दिन के लिए मात्र १२० रूपये प्रतिदिन की मजदूरी  ही मुहैया कराती है वह भी बहुत हद तक सिर्फ कागजों पर, इस हेतु भी किसान के पूरे परिवार से मात्र एक व्यक्ति ही चुना जाता है |

 

दोस्तों ! जब-जब हमारे मुख में अन्न का एक भी दाना जाय तब-तब हमें इन किसानों के प्रति ऋणी होना चाहिए क्योंकि इन्हीं के परिश्रम से हम जीवित हैं, साथ-साथ यह भी अत्यंत विचारणीय विषय है कि हम इनकी बेहतरी के लिए व्यक्तिगत स्तर पर क्या-क्या प्रयास कर सकते हैं |

आइये तो उठा लें अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, क्योंकि हम साहित्यकारों के लिए यह नितांत आवश्यक है कि इस मुद्दे पर कुछ न कुछ सृजन अवश्य करते रहें ताकि इस समाज में इस सम्बन्ध में भी कुछ जागरूकता आये और इन किसानों का कुछ कल्याण हो सके !

नोट :-

(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत हैअपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे 

(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-३  के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी |  प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा |  


 सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

विशेष :-

(१) यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश प्रतियोगिता के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर १६ जुलाई से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही प्रतियोगिता प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |


(२) यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|  संचालक :- अम्बरीष श्रीवास्तव


Views: 9890

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

//घास-फूस की झोंपड़ी, बहा रहे हैं खून


रात व दिन मेहनत करें, खाने को दो जून 


खाने को दो जून, मौज करती है दौलत


खाते हैं भरपेट, दिखाकर शानो-शौकत     


‘’शन्नो’’ किन्तु गरीब, तड़पते रह जायेंगे 


 प्रगति करें भरपूर, आज हम हाथ बंटायेंगे l //

शन्नो जी नें सच कहा, श्रमिक दुखी है आज.

बड़ी मार्मिक कुण्डली, दिल की है आवाज..

दिल की है आवाज, किसानों के घर जायें,

देखें उनका हाल, उन्हें राहत पहुँचायें.

अंबरीश जो आज, दुखी घर-घर की बन्नो.

कर किसान का ध्यान, कह रहीं सबसे शन्नो..

कृपया इस खूबसूरत कुण्डली के लिए बधाई स्वीकार करें मित्र !

इस सुधार-प्रक्रिया को नमस्कार..
आपका हृदय से आभार ! :))
अम्बरीश जी, आपकी सराहना के लिये बहुत धन्यबाद. और रचना पर कमेन्ट के रूप में आपने कमाल की कुंडली भी लिख डाली. वाह ! आपको भी बधाई :) और मुझे आज अपनी कुण्डली में गलती का पता लग गया है. आगे से उसका ध्यान रखूँगी.
आपका हृदय से आभार ! :))
बहुत ही बढ़िया शन्नो दीदी....खुबसूरत...
बहुत सुंदर प्रयास है, हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए शन्नो जी।

(प्रतियोगिता से अलग)

आज सावन का पहला दिन है, सावन और भादों के महीने में कजरी का एक अलग ही महत्व है, वाराणसी और मिर्जापुर की कजरी तो दुनिया में प्रसिद्ध है, सावन का महिना हो, ओ बी ओ के मंच पर खुबसूरत आयोजन चल रहा हो और कजरी ना हो तो आयोजन कुछ अधुरा सा होगा |
तो गुणीजनों आपकी अदालत में कजरी लिख और गाकर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ , पसंद आये तो मुझे भी बताइयेगा |

 

कजरी सुनने हेतु प्ले बटन दबाये ....

 


पिया खेती कराई तकनीक से,

हट के तनिक लीक से ना,

 

खेत बरध से ना जोताई,

नया टेक्टर किनाई,

पइसा बैंको से आई,

कुछ बापू से मांगल जाई,

 

पिया पटवन कराई अब नीक से,

हट के तनिक लीक से ना,

 

खेत से नमूना उठवाई,

शहर से माटी जँचवाई,

पहिचान कमी के कराके,

खेत में खाद डलवाई,

 

किनाई बीया दूकान "सैनिक" से,

हट के तनिक लीक से ना ,

 

लड़ब पंचाईत के चुनाव ,

संगे बावे सारा गाँव,

बनब हमहूँ मुखियाइन,

सगरो होई हम्मर नाँव,

 

होई गाँव के विकास अबरी ठीक से,

हट के तनिक लीक से ना,  

 

पिया खेती कराई तकनीक से,

हट के तनिक लीक से ना,

 

(रचना व गायन)

गणेश जी "बागी"

//पिया खेती कराई तकनीक से,

हट के तनिक लीक से ना,

 

खेत बरध से ना जोताई,

नया टेक्टर किनाई,

पइसा बैंको से आई,

कुछ बापू से मांगल जाई,

 

पिया पटवन कराई अब नीक से,

हट के तनिक लीक से ना,

 

खेत से नमूना उठवाई,

शहर से माटी जँचवाई,

पहिचान कमी के कराके,

खेत में खाद डलवाई,

 

किनाई बीया दूकान "सैनिक" से,

हट के तनिक लीक से ना ,

 

लड़ब पंचाईत के चुनाव ,

संगे बावे सारा गाँव,

बनब हमहूँ मुखियाइन,

सगरो होई हम्मर नाँव,

 

होई गाँव के विकास अबरी ठीक से,

हट के तनिक लीक से ना,  

 

पिया खेती कराई तकनीक से,

हट के तनिक लीक से ना,//

 

वाह भाई वाह ! यह कजरी तो मैनें पहली बार सुनी है बहुत ही मधुर है यह .....खेती की वैज्ञानिक तकनीक को बढ़ावा देने के साथ-साथ यह संयुक्त परिवार की एकता व नायिका की महत्वाकांक्षा को भी प्रदर्शित कर रही है ....इसे  पढ़कर सुनकर  आनंद आ गया ! क्या मधुर गला पाया है आपने ! इसके सृजन व गायन हेतु बहुत-बहुत बधाई व साधुवाद स्वीकारें !:))

सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद मित्र, दरअसल कजरी अधिकतर महिलाओं द्वारा गई जाने वाली विधा है, भादों महीने में मिर्जापुर और वाराणसी क्षेत्रों में कजरी का त्यौहार मनाया जाता है, घर घर झूलें डाले जातें है और महिलाओं द्वारा सामूहिक कजरी देर रात तक गायी जाती है, दूर से कजरी की ध्वनी बहुत ही चमत्कारिक माहौल बनाती है | रिमझिम वर्षा और कजरी वाह वाह वाह |

 

मैने सोचा की क्यू न इस विधा को अपने साथियों के साथ बाटा जाय, गायन इसलिए किया कि आप सबको एक अंदाज लगे कि कजरी कैसे गायी जाती है |

आपने यह  बहुत अच्छा कार्य किया है .......पुनः बधाई आपको :))

आपने कजरी के गायन को बेहतर ढंग से उभारा है.

वस्तुतः, कजरी के स्वर और सुर में एक बारीक ’विरह-टीस’ होती है जो झूलों की पेंग के साथ उल्लास की ओट में दीखती-छुपती बयान होती है. इसका स्थायी स्वर ’विरह’ ही है.

परन्तु आपने इसके प्रारूप में विकास के लिये प्रेरित करती नायिका के विचारों का समावेश कर एक नया आयाम दिया है. आपकी सृजन-शक्ति साधुवाद की पात्र है.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service