आदरणीय साथियो,
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आदरणीय तस्दीक़ जी, भारतीय रेल की लेटलतीफ़ी को प्रदत्त विषय से जोड़ते हुए आपने जो लघुकथा कही है उस पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
1. //अजय रेल्वे स्टेशन पर ट्रेन रवाना होने के समय सुबह 8 बजे से आधा घंटा पहले ही पहुंच गया l// मुझे नहीं लगता कि लघुकथा में इतना सटीक समय देने की कोई ज़रूरत है।
2. शीर्षक बेहतर हो सकता है।
सादर।
रेल की लेटलतीफी पर सटीक तंज करती इस रचना के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक जी।
कल वाली ट्रेन आज समय से है,यही क्या कम है? ट्रेन -परिचालन के हालातेहाल पर सटीक व्यंग्य है।आदरणीय तस्दीक जी,बधाइयां।
कारवाँ बढ़ेगा! (लघुकथा) :
"हम विदेशियों को तुम ऐसे मेसिज क्यों भेजते हो वाट्सएप पर यार!"
"क्यों अंकल क्या हुआ? हिंदी भाषा-प्रशिक्षण के वीडियोज़ और आलेखों की लिंक भेजने में क्या बुराई है ... हमारे हिंदी पखवाड़े में?"
"अबे, कैसा भतीजा है तू यार! तुम्हारे देश में तक कोई हिंदी बोलना पसंद नहीं करता, तो यहाँ कौन पूछेगा हिंदी को?"
"आप तो हिंदुस्तानी हैं न... आप हमारे प्रचार-प्रसार अभियान में ही मदद कर दो... हमारे मेसेज फॉरवर्ड और लिंक शेअर करके...! दरअसल मैं कुछ ऐसे एनजीओ और सोशल मीडिया समूहों से जुड़ा हुआ हूँ, जो विदेशों में भी हिंदी के लिए लगातार काम कर रहे हैं.... सो मैंने उनके संदेश शेअर किये इस पखवाड़े में!"
"मत भेजा करो यार! बंद करो ये हरक़तें! बड़ी मुश्किल से समझाया हमारे वाट्सएप ग्रुप के कुछ मेम्बर्स को?"
"क्यों क्या कह रहे थे? अधिकतर सदस्य तो भारत और एशिया के ही हैं न आपके उस ग्रुप में?"
"तो क्या? हिंदी वाले कोई नहीं! कह रहे थे कि कौन साहित्यकार भतीजा जोड़ रखा है तुमने? इस ग्रुप से निकाल दो! ... बेटा ऐसा करो... तुम योग, मेडिटेशन और रिलिजियस काम करने लगो?"
"क्यों अंकल?"
"अबे, जब तेरे पास इतना फालतू समय है ही, तो ऐसे ही काम कर कि इन ख़ुराफ़ातों से दूर हो सके तू! यार तू इतना पढ़ा-लिखा है.... फ़िर भी हिंदी के पीछे पड़ा है... ऐं! क्या मिलेगा साहित्यकारी से?"
"मिलता है अंकल और मिलेगा... यकीन है आगे और भी अधिक मिलेगा! बाइ बाइ अंकल!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
अपनी मातृभाषा,भारत की राजभाषा के प्रति अधिकांश विदेश - स्थापित हिंदुस्तानियों का यही व्यवहार उनकी असली मानसिकता को दर्शाता है। देश में रहनेवाले भी अधिकतर लोग छिटफुट अंग्रेजी बोल लेंगे,फिर हिंदी बोलनेवालों से खुद को जरा ऊपर समझकर चलेंगे।यह प्रवृति,समझिए कुरीति बन चुकी है।अच्छा चित्र खींचा आपने,आदरणीय उस्मानी जी।बधाइयां।
आदाब। शुक्रिया त्वरित टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई हेतु आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, हिन्दी की दशा-दुर्दशा पर अच्छी लघुकथा कही है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। हालांकि लघुकथा प्रदत्त विषय को लेकर कितना न्याय कर पाई है इसमें मुझे सन्देह है। सादर।
आदाब, शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, अपनी ही मातृभाषा के प्रतिकूलगामी जयचंदों की घृणित प्रवृति और नकारात्मक सोच के होते भी आशा का संचार करती लघुकथा के लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं ! रचना किसी विधा में हो, संदेश सकारात्मक ही जाना चाहिए। और, यही साहित्यकार का धर्म भी है ।
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