आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-146
विषय - "दिल का रिश्ता"
आयोजन अवधि- 17 दिसंबर 2022, दिन शनिवार से 18 दिसंबर 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 17 दिसंबर 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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सादर अभिवादन।
गीत
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मन से मन का न कोई भी नाता जुड़ा
तन से तन के मिलन की चली रीत है।।
*
भाव आत्मिक न लिखती कलम
जलेबी समौसा मिर्च तीखी सनम।।
सब की जुबाँ पर चढ़ा आज देखो
भोगवादी ने जो भी रचा गीत है।।
*
कौन सोनी भला आज सोनी रही
कौन माही ने है प्रीत मन से गही।।
सुख से दुख से उसे वास्ता कुछ नहीं
तन को पाने को केवल बना मीत है।।
*
आज रिश्ता लहू का न मन में रहा
ध्यान सबका लगा सिर्फ धन में रहा।।
कैसे खेलेगा सौहार्द्र खुलकर भला
मन के आँगन में सब के बनी भीत है।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
वाह लक्ष्मण जी बहुत समय बात आज ओबीओ पर लोटा हूँ। आपकी रचना पड़ कर बड़ा अच्छा लगा। बहुत बहुत बधाई।
आ. भाई तपन जी, सादर अभिवादन। गीत और ओबीओ पर आपकी उपस्थिति से हर्षित हूँ। रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,
भाव पक्ष से समृद्ध इस रचना के प्रति हार्दिक बधाई. आजके सम्बन्धों में जैसा हल्कापन व्याप गया है, उस पर आपकी कलम बखूब चली है.
वैसे कुछ बिन्दुओं पर चर्चा आवश्यक है.
’कोई’ के साथ ’भी’ का प्रयोग उचित नहीं है.
कौन सोनी भला आज सोनी रही
कौन माही ने है प्रीत मन से गही।।
सुख से दुख से उसे वास्ता कुछ नहीं
तन को पाने को केवल बना मीत है .... वाह वाह वाह !
मन के आँगन में भनी भीत है... ... क्या बात है !
इस रचना के लिए पुनः हार्दिक बधाई.
शुभ-शुभ
जब हाथ कंधे पर पड़ा तो
एक पल के लिए झेंप गई,
उसने अपना सिर घुमाया और अपनी आँखें पोंछ लीं
जैसे ही वह बालों में फंसे तिनके को हटाने के लिए आगे बढ़ा,
वो उसके कंधे पर गिर
फूट-फूट कर रो पड़ी
मानो भीतर का सारा बवंडर निकल आया हो
देखते ही देखते आँसू झील में बदल गए
उसने बंध ढीले कर दिए , पीठ को सहलाया,
हौले हौले सिर को थपथपाया
जब वह थोड़ा संभल कर बैठ गई, तो उसने पूछा..
ये अचानक से क्या हो गया?
मेरी जान !
उसकी नजरें झुकी रही
बोली
बवंडर में फँसना..उसमें
फंसे सूखे पत्तो सा ऊपर उठते जाना
फिर से
भंवर के बाहर फेंक देना..
गिर जाना.. दिशाहीन सा ..
क्या यही होगा मेरा अतीत, भविष्य और वर्तमान?
तुम इतनी दुखी क्यूँ हो?
मेरी जानेमन!
क्या मैं तुम्हारे साथ नहीं हूँ?
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीया नयना जी,
आपकी प्रस्तुत रचना के माध्यम से आत्मीय भावनाएँ शाब्दिक हुई हैं. हताशा के गहन पलों में कन्धों को मिला आत्मीय स्पर्श पुनः ऊर्जस्वी कर देता है.
प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद और बधाई.
शुभ-शुभ
कुण्डलिया छंद
दिल का रिश्ता हे नहीं, सियासत का गुलाम !
बिछें खूब जग गोटियाँ, शतरंज सरे आम !!
शतरंज सरे आम, धर्म कब आयोजक का !
कवि हुलास चाहिए, शान्त वातावरण हल्का !!
सुख का घर साम्राज्य, उल्लास जगती सस्ता !
रचे बहुजन हिताय, विश्व हो दिल का रिश्ता !!
यह जगती है ईश की, अनुपम रचना जान !
रचयिता समाया सृजन, दिव्य दृष्टि हो ज्ञान !!
दिव्य दृष्टि हो ज्ञान, ईश झाँकता सृष्टि से !
स्वीकृति उसकी हुआ, सृजन काव्य कवि दृष्टि से !!
दिल से रिश्ता रचा , कविता भजन लगती है !
कृपा मात्र ब्रह्म की, हो सृजन जगती है !!
जिम्मेदारी छोड़ सुन, किया कुठाराघात !
कुदृष्टि कविता क्या पड़ी, खेत तुषारापात !!
खेत तुषारापात, सूखते सारे पौधे !
संकल्प भूल गये, पड़े सब आसन औंधे !!
कह 'चेतन' कविराय, लगी आग फुलवारी !
कि पहरेदार गये, भूल सब जिम्मेदारी !!
मौलिक व अप्रकाशित
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छी कुंडलिया हुई हैं। हार्दिक बधाई।
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, कुण्डलिया छंद में प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद.
वैसे इस छंद के मूलभूत विधान पर तनिक अध्ययन आवश्यक है.
हार्दिक बधाई
आवश्यक सूचना:-
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