आदरणीय साथियो,
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आदरणीय अरुण कुमार शास्त्री जी, आपकी रचना प्रभावी बन पड़ी है। पाठक-सदस्यों ने अपनी समझ और अपने अनुभवों के अनुसार सुझाव दिये हैं। उन पर मनन करें तो प्रस्तुतीकरण में और निखार आ जाएगा। मैं भी प्रस्तुति की अंतिम पंक्तियोंसे संतुष्ट नहीं हो पा रहा हूँ। लघुकथा की बुनावट को ये पंक्तियाँ ढीला कर रही हैं।
बहरहाल, आपकी प्रस्तुति और उपस्थिति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ।
अपना-अपना देखो (लघुकथा) :
"हैलो! कैसे हो? सुना है तुम्हारी पत्नी को लकवा मार गया?"
"ठीक-ठाक हूँ। ठीक ही सुना मित्र तुमने। मैंने कुछ को सुनाया और उन्होंने कुछ को सुनाया और कुछ ने फोन करके मुझे बताया और पूछा कि कैसे हो, सब ठीक-ठाक तो है... हालत में सुधार तो है? मैंने जवाब दे दिये... बाक़ी सब ठीक ही है!"
" और क्या दोस्त, इतना ही तो रिवाज़ रह गया है! चाह कर भी कोई किसी की वैसी असली मदद नहीं कर पाता, जैसी कि ज़रूरत होती है! बड़ा बुरा हुआ आपकी फ़ैमिली के साथ। ... और कौन-कौन आया भाभीजी को देखने?"
"आये और गये भी! कुछ पर्यटक सरीखे, कुछ नेताओं सरीखे, कुछ अभिनेताओं सरीखे और कुछ कलाकार सरीखे!"
"बस.. बस समझ गया दोस्त! सोशल वर्कर सरीखे थोड़े न मिलेंगे इस ज़माने में भैया! घबराना मत, यह दौर भी गुज़र जायेगा यार! ज़िंदगी के तज़ुर्बे हैं ये!"
"ये तज़ुर्बे ही नहीं, पैसों और रिश्तों की लेटेस्ट एम. आर. आई. जाँच है। रिपोर्ट ये है कि दौलत और अहम रिश्तों को भी लकवा मार गया!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
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(एम. आर. आई. जाँच = MRI का मतलब है मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग स्कैन, जिसमें आम तौर पर 15 से 90 मिनट तक लगते हैं. ये इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर का कौन सा, कितना बड़ा हिस्सा स्कैन किया जाना है. कितनी तस्वीरें ली जानी हैं. ये रेडिएशन के बजाए मैग्नेटिक फील्ड पर काम करता है।)
आ. भाई शेख शहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर समसामयिक रचना हुई है हार्दिक बधाई।
आदाब। शुक्रिया आद. लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी। आपकी टिप्पणी से हौसला अफ़ज़ाई हुई। विलंब से लिख सका। तत्काल लिख कर पोस्ट की। आपने त्वरित टिप्पणी की। अच्छा लगा।
आदाब। आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शक टिप्पणी हमारे लिये बहुमूल्य है हार्दिक धन्यवाद आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी। शीर्षक आदि पर.विचार करूँगा।
तीक्ष्णता दो पंचपंक्तियों में (मध्य की 'सरीखे' शब्दों वाली और अंत वाली) के नैपथ्य व अनकहे में उत्पन्न करने का प्रयास किया है।
प्रिय शेख साहिब आदाब , सुन्दर कथानक व दो मित्रों का औपचारिक वार्तालाप मजा आया हम सभी के जीवन से जुड़े वक्तव्य ।
रचना पटल पर.आपकी उपस्थिति और.आपके द्वारा प्रोत्साहन हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. अरुण कुमार शास्त्री जी।
आदरणीय भाई शेख शहजाद जी, सादर अभिवादन।आपकी चिर परिचित शैली में सुंदर समसामयिक रचना हुई है। हार्दिक बधाई।
रचना पटल पर समय देकर प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
आदरणीय उस्मानी जी, भागमभाग और औपचारिकता के निर्वहन को दर्शाती लघुकथा और तीक्ष्णता की आकांक्षी है।बधाइयां।
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