आदरणीय साथियो,
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आदाब। रचना पटल पर समय देकर मार्गदर्शक और प्रोत्साहक टिप्पणी हेतु शुक्रिया आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। तीक्ष्णता दो पंचपंक्तियों में (मध्य की 'सरीखे' शब्दों वाली और अंत वाली) के नैपथ्य व अनकहे में उत्पन्न करने का प्रयास किया है।
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, लघुकथा विधा के आप सभी पुराने कर्मी हैं। आपकी प्रस्तुति पर जानकार लोग अपनी-अपनी विधाजन्य बात करेंगे, परन्तु, मेरी समझ से प्रस्तुति में भाव का अभाव प्रतीत हो रहा है। रचना कोई हो, वह सपाट नहीं होनी चाहिए। बाकी, बहुत ही सार्थक बिंदु उठाया है आपने।
हार्दिक बधाइयाँ
बुरे फँसे - लघुकथा -
पुलिस अधीक्षक के कक्ष के बाहर सिपाही सेवा राम एक घंटे से इस इंतज़ार में खड़ा था कि कब साहब अकेले हों और वह अपनी बात कहने अंदर प्रवेश करे। क्योंकि उसकी समस्या कुछ इस प्रकार की थी कि उसे अकेले में ही बताया जा सकता था।
आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई।वह अंदर प्रवेश करते ही एस० पी० साहब के पैरों में गिर पड़ा और रोने लगा।
एस० पी० साहब भले आदमी थे।
सेवा राम को उठाया, सांत्वना दी, पानी पिलाया और समस्या पूछी,"क्या बात है सेवा राम ? एक पुलिस कर्मचारी होकर इतने लाचार और परेशान।”
"साहब, मेरी समस्या थोड़ी गंभीर है। मेरी पत्नी मुझे वापस दिला दीजिये।”
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। खुल कर पूरी बात बताओ।”
"साहब मेरी शादी को मुश्किल से अभी चार महीने ही हुए हैं।”
"मुझे पता है। तुमने मुझे भी कार्ड दिया था। शादी तुम्हारे गाँव में थी अतः मेरा जाना नहीं हो सका था।”
"साहब मेरी शादी में ससुर जी की एक ही शर्त थी कि हमारी लड़की गाँव में नहीं रहेगी। उसे अपने साथ रखना पड़ेगा।”
"हर माँ बाप यही चाहते हैं। ये तो तुम्हारे लिये भी अच्छी बात है।”
"जी साहब जी, इसीलिये मैंने आते ही तुरंत अपने दरोगा जी से इस विषय में मदद की गुहार लगाई। उन्हें सरकारी मकान दिलवाने के लिये अर्जी भी दी।”
"बहुत बढ़िया। अब उस अर्जी की क्या स्थिति है?”
"वह तो मुझे नहीं पता। हाँ, इस बाबत मैंने दो तीन बार दरोगा जी से पूछा था तो उन्होंने कहा कि कुछ ज्यादा परेशानी हो रही है क्या। मैंने उन्हें बताया कि लड़की अपने पीहर में ही रह रही है अतः उसका परिवार बार बार दबाव बनाता रहता है।”
"सही बात है। समाज भी तरह तरह की बात करता है।”
"तभी दरोगा जी ने मुझे एक सुझाव दिया कि उनको तीन कमरों का मकान मिला हुआ है। वह अकेले ही रहते हैं। उस मकान में आवागमन के दो द्वार हैं। जब तक तुम्हारा मकान मिले, तुम चाहो तो मेरे साथ उस मकान में रह लो।अलग दरवाज़े से आवागमन रखो।”
"यह सुझाव भी ठीक है।”
"साहब जी यही तो मेरी सबसे बड़ी भूल साबित हुई।”
"क्या मतलब?”
"अब वह लड़की मेरे साथ नहीं, दरोगा जी की पत्नी बन कर रह रही है।”
मौलिक एवं अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी।
तेज वीर साहिब वाह वाह आज कल के समाज का सच्चा आईना पेश किया कथा के माध्यम से काबिले तारीफ -
हार्दिक आभार आदरणीय अरुण कुमार जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी,लघुकथा की बधाइयां।कुछ व्याकरण जनित/टंकण जनित त्रुटियां ध्यान आकृष्ट कर रही हैं।कथा में और कसावट हो,तो ज्यादा जंचे। सादर।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
क्या बात है !!
आपने 'अवसर' के नए आयाम को प्रस्तुत किया हैं, आदरणीय तेजवीर जी।
हार्दिक बधाइयाँ
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