परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 160 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा जनाब मुहम्मद अल्वी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
'लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे'
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम महज़ूफ़
रदीफ़ :- भेज दे
क़ाफ़िया:-(ई का)
ज़िन्दगी,शाइरी, आदमी,नमी,वही आदि
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदाब अर्ज़ है जनाब।
करीमाना इक रौशनी भेज दे
इलाही मेरी रहबरी भेज दे
मिटा दे अँधेरों को मेरे ख़ुदा
मुझे नूर की इक कनी भेज दे
फ़रोज़ाँ किया मौला तूने जहाँ
मेरे घर में भी चाँदनी भेज दे
हो रहमत तेरी बनके बेटी अता
कि दामन में नन्ही परी भेज दे
मैं दुश्वारियों में गिरफ़्तार हूँ
रिहाई की मौला घड़ी भेज दे
अँधेरों में ही बस घिरा हूँ 'अमीर'
हिदायत की रब रौशनी भेज दे
गिरह -
मिटा दे जो लफ़्ज़ों की पेचीदगी
'लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे'
"मौलिक व अप्रकाशित"
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब
अच्छी ग़ज़ल है। बधाई स्वीकार करें।
करीमाना इक रौशनी भेज दे
इलाही मेरी रहबरी भेज दे।।
सुझाव - इलाही/किसी की मुझे रहबरी भेज दे
हो रहमत तेरी बनके बेटी अता
कि दामन में नन्ही परी भेज दे
उला का वाक्य बहुत स्पष्ट नहीं लग रहा।
दूसरा दोनों ही मिसरों में बेटी अता
करने की बात कही जा रही है।
मेरे विचार से उला में बेटियों के गुण बताए जाए्ँ
और फिर सानी में अता करने की ख़्वाहिश जताई जाए।।
सुझाव -
इज़ाफ़ा मिरी ख़ुशनसीबी में कर
कि दामन में नन्ही परी भेज दे
अँधेरों में ही बस घिरा हूँ 'अमीर'
हिदायत की रब रौशनी भेज दे
यहाँ उला में 'अमीर' जी को संबोधित किया जा रहा है
और सानी में ईश्वर से क्या अपेक्षा है बताई जा रही है
उला में 'दुआ' शब्द के प्रयोग से बात और
ज़ियाद: साफ़ हो जाएगी।
सुझाव -
अँधेरे में हूँ बस दुआ है 'अमीर'
हिदायत की रब रौशनी भेज दे
// शुभकामनाएँ //
आदरणीय अमित जी, ख़ाकसार की ग़ज़ल पर आपकी आमद, ज़र्रा नवाज़ी और इस्लाह का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
करीमाना इक रौशनी भेज दे
इलाही मेरी रहबरी भेज दे।।
//सुझाव - इलाही/किसी की मुझे रहबरी भेज दे//
मुहतरम, 'इलाही मेरी रहबरी भेज दे' ज़ियाद: मौज़ूँ मिसरा है।
हो रहमत तेरी बनके बेटी अता
कि दामन में नन्ही परी भेज दे
//उला का वाक्य बहुत स्पष्ट नहीं लग रहा।//
बिल्कुल स्पष्ट है - 'तेरी रहमत मुझे बेटी की शक्ल में मिले'
//दूसरा दोनों ही मिसरों में बेटी अता करने की बात कही जा रही है।//
जी नहीं, सिर्फ़ बेटी नहीं.... सानी मिसरे में 'नन्ही परी' से मुराद परियों की तरह 'ख़ूबसूरत बेटी' से है।
अँधेरों में ही बस घिरा हूँ 'अमीर'
हिदायत की रब रौशनी भेज दे
//यहाँ उला में 'अमीर' जी को संबोधित किया जा रहा है
और सानी में ईश्वर से क्या अपेक्षा है बताई जा रही है//
जनाब, ऊला में परेशानी के आलम में शाइर ख़ुद से ही बात कर रहा है और सानी में अपनी उस परेशानी को दूर करने के लिए ख़ुदा से दुआ़ कर रहा है, ये स्वभाविक है।
//उला में 'दुआ' शब्द के प्रयोग से बात और
ज़ियाद: साफ़ हो जाएगी।
सुझाव -
अँधेरे में हूँ बस दुआ है 'अमीर'
हिदायत की रब रौशनी भेज दे//
ये क्या ? आप तो अपने ही नज़रिए के ख़िलाफ़ बात करने लगे!
ऊला में भी 'दुआ' और सानी में भी 'दुआ'??
अभी तो नसीहत कर रहे थे
*दूसरा दोनों ही मिसरों में बेटी अता करने की बात कही जा रही है।*
हो सकता है तकनीकी रूप से आपका मिसरा बहतर हो, मगर मैं सिर्फ़ तकनीक के लिए अपने भाव और तख़ैय्युल को क़ुर्बान नहीं कर सकता हूँ।
'अँधेरे में होना' और 'अँधेरों में घिरा होने' में बहुत कुछ बदल रहा है, ग़ौर फ़रमाएं.... सादर।
जनाब अमीरुद्दीन साहब अच्छी ग़ज़ल हुई मुबारकबाद आपको, आदरणीय अमित जी के सुझाओ कथ्य पर आधारित एवं उत्तम लगे |
जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
अच्छी ग़ज़ल हुई है जनाब अमीरूद्दीन जी। भाई अमित जी कि सलाह उपयोगी है ।
आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
आदरणीय अमीर जी नमस्कार
बहुत ख़ूब हुई ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिये
अमित जी की टिप्पणी से काफ़ी कुछ समझने को मिला
सादर
मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया... टिप्पणीयाँ ही हमें सिखाती हैं, यह निर्विवादित रूप से सच है।
आ. अमीरुद्दीन साहब,
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।
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