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सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर
नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।
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उर्वर करेगा कोई तो फिर से ये सोच बस
सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।
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कीटों के प्रेत नोच के हर शब्द ले गये
रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।
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पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम
नफरत के दौर प्यार के तेवर सँभालकर।४।
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फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा
जिस ने रखा है हाथ में पत्थर सँभालकर।५।
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आयी बहार जब से है अपने भी गाँव में
यादों में रख दिया है ये पतझर सँभालकर।६।
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(28-10-23)
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आदरणीय धामी जी...ग़ज़ल अच्छी लगी...सादर
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