आदरणीय साथियो,
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शुक्रिया आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय'जी। अवश्य प्रयास करूंगा।
अपने आसपास के माहौल से प्रेरित रचनाकर्म प्रदत्त विषय को अधिक छू नहीं पा रहा है पर खाने की बर्बादी पर केन्द्रित भाव अच्छे हैं। गोष्ठियों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता प्रेरक है
आदाब। शुक्रिया। यहां तीन तरह की प्रतीक्षाओं को उभारने का प्रयास किया है। मोबाइल से वीडियो बनाने वालों की अवसरवादिता/प्रतीक्षा, भूखे बच्चों की जूठन के बजाय पैकेट जैसे नयेव ताज़े भोजन की प्रतीक्षा और भूखे मरीज़ व बच्चों संग भूखी महिला की भोजन पाने की प्रतीक्षा और सब्र। आपको रचना विषयांतर्गत ही लगेगी।
आदरणीय विभा जी, समाज में समान अधिकार और सम्मान के लिए नारी की प्रतीक्षा पर अच्छी सोच उठाई है आपने। किन्तु रचना में बहुत सी बातें अभी स्पष्टता मांग रहीं हैं। थोड़ा समय और देकर आप इसे बेहतर कर सकती हैं।
हार्दिक बधाई आदरणीय विभा रश्मि जी। लघुकथा हेतु आपने विषय सुंदर चुना है लेकिन स्पष्टता के अभाव में रचना उस स्तर तक पहुंच नहीं सकी है । आपका प्रयास सराहनीय है। मगर लघुकथा थोड़ा और समय मांग रही है।
आदाब। अपने आसपास के देखे/सुने प्रसंग से प्रेरित रचना लग रही है। आत्मसम्मान और रिश्तों के मान तहत प्रतीक्षा उभारने का प्रयास लगा। //“इस बार तुम्हारा चलना अलग बात होती…।” पति ने कहा।// किसके पति ने कहा। भाभी के? या ..? इसके बाद के तीन संवाद किसने कहे, यह भी संवाद के साथ जोड़ना था रचना के ऊपर के संवादों की तरह क्योंकि यहां पात्र अधिक हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में मैं पात्रों को नाम दे देना बेहतर समझता हूॅं और रिश्तों के नाम संवाद संग। जैसे : //भाभी, क्या आप हमारा घर देखना नहीं चाहेंगी?” दीपक (देवर) ने पूछा। विषय नया सा है। परिमार्जन और अंतिम संवाद में कसावट और भाषा शैली बोलचाल वाली करके बेहतरीन लघुकथा में बदला जा सकता है रचना को मेरे विचार से। सादर।
वाह...मानी पत्थर जैसे अहिल्या ..पुरुष के प्रेम की प्रतीक्षा में...बहुत सुन्दर सृजन..हार्दिक बधाई
राम राज्य - लघुकथा -
“सुलोचना, सुबह पांच बजे तैयार हो जाना। गाड़ी लेने आ जायेगी। राम जी के दर्शन के लिये यही समय तय हुआ है। बाद में बहुत भीड़ हो जायेगी।”
"नहीं दीदी आप और जीजाजी चले जाना। हमारा जाना संभव नहीं होगा।”
"अरे ये क्या बात हुई? हम इतनी दूर से यहाँ तुम्हारे शहर आये हैं।और तुम खुद अपने ही शहर में राम जी के दर्शन में आनाकानी कर रही हो।”
"ऐसी बात नहीं है दीदी। हम लोग गये थे, पहले दो बार, मगर हमको प्रवेश नहीं करने दिया। दरबान ने भगा दिया।"
"क्या बात कर रही हो? ऐसा कैसे हो सकता है?”
"हम लोग अछूत हैं ना इसलिये।”
"हम भी तो तुम्हारे ही जाति वाले हैं लेकिन हमारे पति को तो निमंत्रण पत्र भेजा गया था।”
"दीदी, क्या है ना कि हम लोग लोकल हैं। सब जानते पहचानते हैं। हम काम धंधा भी अभी वही कर रहे हैं। और आपके पति तो बड़े सरकारी पद पर हैं। हो सकता है उनको बुलाने के पीछे कोई मजबूरी रही हो।”
"हम लोग इस बारे में मन्दिर में बात करेंगे और देखो कुछ ना कुछ कर लेंगे। तुम निराश मत होना।”
"नहीं दीदी, आप ऐसा कुछ मत करिये।बेकार में आप परेशानी मोल ले रहे हैं।”
"कैसी परेशानी?”
"हो सकता है उन लोगों को आपकी जाति बिरादरी की जानकारी ही ना हो। नाहक आप अपनी बंद मुट्ठी खोल रही हैं।”
"तो क्या तुम कभी भी राम जी के दर्शन नहीं कर पाओगी।”
"दीदी, अभी तो राम जी आये हैं। देखना एक दिन राम राज्य भी आयेगा।"
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय तेजवीर जी, अच्छी, रोचक और विषयान्तर्गत रचना के लिए बधाई। सामाजिक समरसता के इंतजार में एक बड़ा तबका आज भी है। और शिक्षा तथा उच्च पद जातिवाद को हटाने में सहायक हो सकते हैं। अच्छा संदेश और अच्छी तरह बुनी हुई एक सशक्त कथा।
हार्दिक आभार आदरणीय अजय जी।
बेहतरीन पंचपंक्ति युक्त समसामयिक विषयांतर्गत रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। हालांकि कि इस सदी में जातिगत भेदभाव कम हुआ है काफ़ी हद तक। शीर्षक कुछ और हो, तो बेहतर। जैसे 'वो भी आयेगा' या 'ये राज्य और वो राज्य '
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