आदरणीय साथियो,
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अंतिम दीया
रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश में।'
'नहीं।कभी नहीं।' बाती तपाक से बोली।
'कब तलक जलेगी? तेल तो खत्म हो चला।' अँधेरे ने चुटकी ली।
'प्राची के आने तक। स्नेहसनी हूँ।'
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
रोशनी की दस्तक - लघुकथा -
"अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे हैं।"
अम्मा की बेटी ने गुहार लगाई ।
अम्मा ने बाहर आकर देखा। शहर के विधायक जी अपनी बड़ी सी गाड़ी में से निकाल कर मिठाई और दिवाली के पॉकेट बाँट रहे थे। लोगों की कतार लगी हुई थी। अम्मा भी कतार में खड़ी हो गई।
शोर सुन कर अम्मा का बेटा भी बाहर आ गया।
“अम्मा, धूप में क्यों खड़ी हो? ये किस बात की कतार लगी है?”
"बेटा, ये नेताजी दीवाली की मिठाई देने आये हैं।”
"मिठाई के साथ और क्या है?”
"शायद कुछ मोमबत्ती और फुलझड़ी हैं।”
“क्या ये सामान हमारे लिये अनिवार्य है?”
"कुछ दिन ये मोमबत्तियाँ झोंपड़ी में रोशनी करेंगी। हमारी लालटेन का तेल बचेगा।”
"मगर हमने ये सामान माँगा था क्या?" हमारी आज की सबसे बड़ी आवश्यकता क्या है?”
"बेटा, इस समय सबसे बड़ी जरूरत तो तुम्हारी नौकरी की है।तेरे बापू के मरने के बाद घर चलाना मुश्किल हो गया है।”
"और उसका वादा एक साल पहले इन्हीं नेता जी ने किया था।अब क्या बोल रहे हैं?”
"कह रहे हैं कि कोशिश की जा रही है।”
“और ये कोशिश अगले चुनाव तक चलती रहेगी।”
"और हम लोग कर भी क्या सकते हैं।”
“हम इस कतार से अलग तो हो सकते हैं।इन उपहारों का बहिष्कार तो कर सकते हैं । इनसे ये तो पूछ सकते हैं कि इनका बारहवीं पास बेटा सरकारी कारखाने का डाइरेक्टर कैसे बन गया।"
अम्मा यह सुन कर कतार से बाहर निकल आई।
अम्मा की देखा देखी एक एक कर मुहल्ले के सभी लोग कतार छोड़ अपनी झोपड़ियों में जाने लगे।जिन लोगों ने पॉकेट ले लिये थे, वे लोग भी पॉकेट वापस नेता जी की गाड़ी में डाल दिये ।
नेता जी इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देख अचंभित हो गये ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
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