आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ चौसठवाँ आयोजन है।.
छंद का नाम एक बार पुनः - मनहरण घनाक्षरी
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22 मार्च’ 25 दिन शनिवार से
23 मार्च’ 25 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
मनहरण घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22 मार्च’ 25 दिन शनिवार से 23 मार्च’ 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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तैल चित्र सम्मुख बालक रहा प्रेरणा बनना, है उसको पढ़कर, पिता समान बाबू ।
स्कूल जाते बस्ता हाथों, रखता बालक बिम्ब , आदर्श मानते पिता, हाथ कमान साबू
होगी पिता होते मृत, बच्चा साबू पेट जब , कथा सुनी माँ से ही थी, बचपन में माँ से ।
माडल बनना साबू, इस रीति नीति पक्का, लेकिन उचित प्रथा, क्या वो बने प्रथा से ।।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति आयोजन की प्रथम रचना बन कर प्रस्तुत हुई है. इस हेतु विशेष बधाई
यह अवश्य है कि आपने मनहरण घनाक्षरी के विधान का अध्ययन नहीं किया है. कारण कि, इसकी प्रत्येक पंक्तियों का पदांत तुकांतता का निर्वहन करते हैं. दूसरी बात, रचनाओं की विशेषता उनकी संप्रेषणीयता होती है. इस ओर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है.
आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
शुभ-शुभ
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सपने खुले नैन के, न नींद के न रैन के, कर्म हो उत्साह भी तो, ये सही प्रयास है।
सोच सही रखना है, बाधा पार करना है, भाग्य यदि साथ दे तो, पूर्ण होती आस है।।
बच्चों को बड़े होना है, स्वयम खड़े होना है, आगे बढ़ते जाना है, स्वप्न यही एक है।
निर्धनता बाधक है, मार्ग में भी कंटक है, पूरे मन से ठान लो, तो रास्ते अनेक हैं।।
गरीबी अभिशाप है, अशिक्षा महापाप है, भीख माँगते हैं बच्चे, देश शर्मसार है।
दूर कर दे अज्ञान, सर्व शिक्षा अभियान, केन्द्र राज्य के जरिए, शिक्षा का प्रचार है।।
दर्पण सच बोलता, भविष्य द्वार खोलता, क्या बनोगे सामने है, देखो परछाइयाँ।
खूब तुम्हें पढ़ना है,अधिकारी बनना है, इतनी ऊँची सोच की, देखो गहराइयाँ।।
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मौलिक अप्रकाशित
आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आयोजन में प्रस्तुत हुई रचना पर आपने समय दिया है. किंतु, काश आपने इस छंद के विधान का अवगाहन किया होता. इस छंद के चार पद होते हैं और सभी पदांत तुकांतता का निर्वहन करते हैं. इस ओर आपका ध्यान जाना था.
बाकी, जैसा कि मैंंने कहा पद संयोजन पर इस बार आपने यथोचित प्रयास किया है. कथ्य के लिए हार्दिक बधाई.
शुभातिशुभ
मनहरण घनाक्षरी
आज धन मान आस, हो न पास किन्तु कल, मैं भी देखना बढूँगा, आन बान शान से।
कोई चाहे रोकना भी, तो न रोक पाएगा यूँ, मुझको सहज कहीं, मेरी पहचान से।
मैं भी मंज़िलों को खूब, बूझता हूँ जानता हूँ, हारना न कभी मुझे, कष्ट से थकान से।
मुझको यकीन मेरे श्रम पर सदा-सदा, माँगता न व्यर्थ कभी, वर भगवान से।।
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मौलिक/अप्रकाशित.
वाह वाह वाह
आदरणीय अशोक भाईजी, आपने एक ही छंद में प्रदत्त चित्र को उकेर कर रख दिया है. इस श्लाघनीय प्रयास के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
मुझको यकीन मेरे श्रम पर सदा-सदा,
माँगता न व्यर्थ कभी, वर भगवान से .. इस मानसिक दृढ़ता को शाब्दिक करने के लिए बार-बार बधाइयाँ
प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाइयाँ
शुभातिशुभ
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1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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