आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़सठवाँ आयोजन है।.
छंद का नाम - कुण्डलिया छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
21 जून’ 25 दिन शनिवार से
22 जून’ 25 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
21 जून’ 25 दिन शनिवार से 22 जून’ 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र पर आपने सुन्दर कुण्डलिया छंद रचे हैं. "योगा कहते योग को, यह भी है इक रोग॥"...सचमुच ही मात्राएँ मिलाने के लिए इस प्रकार का अनुचित प्रयोग कई रचनाकारों द्वारा किया जाता है. यह बन्द होना चाहिए. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आदरणीय अशोक भाईजी
छंदों की प्रशंसा और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।
कुंडलिया छंद
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पढ़ना लिखना सीखते, नन्हें - नन्हें बाल।
मिलकर करते योग सब, मिला ताल से ताल।
मिला ताल से ताल, जगे यह दुनिया सारी।
छूमंतर हों रोग, योग जब पड़ता भारी।
सुन लो रे ' कल्याण ', योग की सीढ़ी चढ़ना।
तेज रहे मस्तिष्क, खूब तुम लिखना पढ़ना।।
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योगी जन सब योग को, देते नव आयाम।
बाल सभी मिल सीखते, आसन प्राणायाम।
आसन प्राणायाम, हरें सब पीर बदन की।
काया हो नीरोग, कली ज्यों खिले चमन की।
जागो रे ' कल्याण ', पड़े क्यों बनकर भोगी।
चमकालो तकदीर, छोड़ कर आलस योगी।।
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मौलिक एवं अप्रकाशित
वाह,चित्र पर सुंदर कुण्डलिया रचे हैं आद.सुरेश कुमार 'कल्याण जी।
सुन्दर सार्थक छंद सृजन..हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी
योगी जन सब योग को, देते नव आयाम।
बाल सभी मिल सीखते, आसन प्राणायाम।
वाह वाह.. हार्दिक बधाइयाँ
आदरणीय सुरेश कल्याण जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार दोनों ही कुण्डलिया छंद आपने सुन्दर रचे हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें. जहाँ-जहाँ आपने 'कल्याण' अपने उपनाम का प्रयोग किया है. उसे यदि एक वचन करें तो छंद और भी प्रभावी बन पडेगा. सादर
आदरणीय सुरेश कल्याण जी,
आपकी छंद रचना और सहभागिता के लिए धन्यवाद।
योगी जन सब योग को, देते नव आयाम।
बाल सभी मिल सीखते, आसन प्राणायाम।
-कुण्डलिया छंद-
1-
कुण्डलिया लिखने दिया, योग दिवस का चित्र।
छंदोत्सव में योग पर, लिखना सबको मित्र।।
लिखना सबको मित्र, योग के लाभ समूचे।
पहुँचाना है योग, गली हर कूचे-कूचे।।
रहें स्वस्थ सब लोग, लगे खुशहाली दिखने।
इस कारण यह चित्र, दिया कुण्डलिया लिखने।।
2-
सिखलाया जाए अगर, बचपन से ही योग।
तो जीवनभर व्यक्ति से, दूर रहेंगे रोग।।
दूर रहेंगे रोग, स्वस्थ होगी तब काया।
काम करेंगे लोग, बढ़ेगी घर में माया।।
योग दिवस का पर्व, सभी ने साथ मनाया।
छात्रों को भी योग, शिक्षकों ने सिखलाया।।
3-
बचपन से जो भी करे, योग और व्यायाम।
इच्छाओं की वह सदा, रखता कसी लगाम।
रखता कसी लगाम, नियम यम संयम करके।
आधि-व्याधियाँ दूर, रहें उससे डर-डर के।।
योग रखे सम्पन्न, व्यक्ति को तन-मन-धन से।
रहना जिसे प्रसन्न, योग सीखे बचपन से।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
-हरिओम श्रीवास्तव-
चित्रानुकूल बहुत सुन्दर और सार्थक छंद सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी
सिखलाया जाए अगर, बचपन से ही योग।
तो जीवनभर व्यक्ति से, दूर रहेंगे रोग।।...मात्र इन दो पंक्तियों के माध्यम से आपने निरोग रहने का मन्त्र जन-जन तक पहुंचा दिया है.
आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सादर, प्रदत्त चित्र और योग दिवस पर आपके तीनों ही कुण्डलिया छंद सार्थक बन पड़े हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आदरणीय हरिओम भाईजी
सुंदर सार्थक तीन छंदों के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
गली हर कूचे-कूचे।।
कूचे का अर्थ गली ही होता है। अतः गली के स्थान पर कोई और त्रिकल रखना सही होगा।
वाह वाह, आदरणीय हरिओम जी, वाह।
आप कुण्डलिया छंद के निष्णात हैं। आपके सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद। अच्छी और सफल रचनाओं के लिए हार्दिक बधाइयाँ
आज गाँव में पारिवारिक कार्यक्रम में अत्यंत व्यस्त हूँ। आपको पता ही है। खैर, जीवन-मरण ही संसार-चक्र है।
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