रघुनाथ सिंह अपना दुआर पर चार पाँच आदमी के संगे बाईठल रहूआन चौकी पर एगो प्लेट में बिस्कुट आउर चनाचूर रखल रहुये सब के हाथ में चाय के गिलास रहे ! एक एक कर के बिस्कुट चनाचूर उठावत रहुये लोग बात चित के संगे चाय पिआत रहुये लोग ! तभी उहा प्रकाश के मोटर साईकिल आके रुकुवे ओकरा पीछे देव वर्त सिंह आउर अब्दुल मिया बाईठल रहे लोग एक एक क के उतरुवे लोग तले रघुनाथ सिंह खड़ा होके हाथ जोडले सवागत के मुद्रा में ! '' आवs आवs अब्दुल मियां कईसे रास्ता भूल के आ गईला भाई'' ! अब्दुल मिया हाथ जोड़ के कहलन ''इहा से मिली इहा के हमार दोस्त देव वर्त सिंह जी बानी'' दुनु आदमी एक दुसरे के प्रणाम कईले ! , तले प्रकाश आगे बढ़ के उनकर पाव छू के प्रणाम कईलन ! अब्दुल मिया बोललन ''इ प्रकास बारन इहा के लईका'' तब रघुनाथ बाबु बोललन ''बहुत सुन्दर बैठी लोगिन'' ! जे बैठाल रहे उ खड़ा हो गाइल ! फिर रघुनाथ बाबु आवाज लगवलन ''रामू आउर दू चार गो कुर्सी ले आवा हो'' ! अन्दर से आवाज आइल ''जी मालिक'' , एगो लईका चार गो प्लास्टिक के कुर्सी ले के आइल ! सब कोई बाईठल रघुनाथ बाबु रामू के आउर चाय लावे के कहलन आउर साथै इहो बोल देहलन की घर में बोल द खाना बनावे के ! तब अब्दुल मिया कहलन ''एकर का जरुरत बा'' , तब रघुनाथ बाबु कहलन ''भाई अभी एक बजे वाला बा हम खाना खायेम आउर शास्त्र इ कहत बा की बिना मेहमान के खिअवले खाईला से पाप लगे ला त हमके पाप के भागीदार मत बनाई'' ! सब कोई हसे लागल , तब देव वर्त बाबु कहलन ''हमनी के आवे के मकसद इ रहल हा की प्रकाश के आलावा हमारा एगो लइकियो बाड़ी उनकर नाम हा सुमन उनकरे खातिर राउर बेटा विजय के हाथ मांगे खातिर आइल बानी'' ! रघुनाथ बाबु मुस्काके कहलन ''विजय राउरे लईका बा कवनो बात ना बाकिर ''.... ! ''बाकिर का रघुनाथ बाबु'' अब्दुल मिया कहलन , तब रघुनाथ बाबु कहलन ''अरे भाई औउसन कवनो बात नइखे राउआ लोग टीपन ले जाई मिलाई ओकरा बाद नु'' ! तब देव वर्त सिंह कहलन ''उ त ठीक बा देन लेन के बात हो जाईत'' ! तपाक से रघुनाथ बाबु बोललन ''ये महराज ये से थोड़े बिगरी राउआ पाहिले गणना मिलाई मनना मिले में देरी ना लागी हमरा लईकी पसंद आ जाई त दहेज कवनो माईने नइखे रखत'' ! तभी एगो मोटर साईकिल आके रुकल , तब रघुनाथ बाबु कहलन ''ली विजय आ गइलन'' तभी विजय के नजर प्रकाश पर पडल ''आरे प्रकाश तू इहा'' ! प्रकाश उनकर से हाथ मिलावालन आउर बोललन ''इहा के हमर बाबु जी बानी इहा के अब्दुल काका'' दुनु आदनी के उ प्रणाम कईलन विजय के देख के देव वर्त बाबु के चेहरा खिल गाइल रहे ! तब रघुनाथ बाबु कहलन ''विजय इहा के तोहरा सादी खातिर आइल बानी'' तब विजय कहलन ''बाबु जी हम अभी सादी ना करब'' ! एतना सुन के देव वर्त बाबु के चेहरा मुरझा गाइल ...........
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बाकि अगिला अंक में ,
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राउर कहानी त रोचक होखल जात बा गुरूजी,बधाई.
dhanyabad sir
aapke kahaani ta lajabab ba auri rochak bhi ...................badhai swikar karih Atendra ki wori se................
dhanyabad bhai
कहानी के दुसरकियो कड़ी में रोचकता बनल बा. घटना-क्रम में वाक्य कम राखीं. संवादे से ढेर मालुमात होत जाला. ई कहानी कहे के निकहा विधि हऽ.
बहुत बढिया चल रहल बा. बढ़वले जाईं रविबाबू. ... शुभेच्छा.
rauaa login ke aasirbad banal rahe bhaiya ihe chahat ba
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