For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुक्तक
--------------

हांथों में ले कर ज़ाम रात भर,
बहकते रहे बे-लगाम रात भर,
लतीफ़े उछलते रहे मुशायरे में,
रोये गालिब खैय्याम रात भर ॥१॥

उपहास को विश्वास मिल गया,
कु-हास को अट्टहास मिल गया,
लतीफ़ों की मंथरा खुश हो गई,
कविता को वनवास मिल गया ॥२॥

कौवों को मधु-मास मत दीजिये,
कोयल को सन्यास मत दीजिये,
चुटकुलो को बिठाके सिंहासन पे,
कविता को वनवास मत दीजिये ॥३॥

गांव की गोरी ने पनघट बदला होगा,
या चांद चकोरी ने घूंघट बदला होगा,
कविता लिखना कॊई छॊटी बात नहीं,
मैना नॆं पिंजड़े मॆं करवट बदला हॊगा ॥४

Views: 559

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2012 at 9:21pm

चारों मुक्तक मंचीय आयोजनों के सच को बयां कर रहे है, चुटकुलों के आगे कविता दम तोड़ती नजर आती है जबकि भौड़े और दुअर्थी चुटकुलों को श्रोता पसंद कर रहे है, यहाँ तक की नामी गिरामी वरिष्ट साहित्यकारों को हुटिंग का सामना करना पड़ जाता है, बहुत ही उम्दा मुक्तक , बधाई कविराज |

Comment by Abhinav Arun on January 13, 2012 at 8:57pm

अच्छे मुक्तक ! पसंद आया kavi जी आपका ये अंदाज़ भी | हार्दिक बधाई !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 13, 2012 at 8:11pm

मुक्तक की ऊँचाइयों और इनसे निस्सृत होती गंभीरता पर आपको हार्दिक धन्यवाद, राजबुन्देली जी.

हाँ, एक बात, भाई शुभ्रांशुजी के सुझावों पर अवश्य ध्यान देंगे.  उनकी बात चौथे मुक्तक की चौथी पंक्ति में मैना और करवट के लिये  उचित है.

 

शुभ्रांशुजी से निवेदन :  कारक ’ने’ के कारण क्रिया कर्त्ता के अनुसार नहीं होगी. इस लिहाज से पनघट और घूँघट पुल्लिंग होते हैं.

 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2012 at 7:47pm

आप,,,,सब को प्रणाम,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 13, 2012 at 11:22am

बहुत ही सुन्दर मुक्तक, आदरणीय बुन्देली साहिब साधुवाद स्वीकारें. 

Comment by Shubhranshu Pandey on January 13, 2012 at 10:00am

सभी मुक्तक एक से एक हैं और कितने अर्थ भरे हैं. वास्तविकता को मुक्तक में पिरो कर आपने कहा है. 

आखिरी मुक्तक में व्याकरण का लिंग दोष समझ में आ रहा है. चांद चकोरी और मैना स्त्रीलिंग माने जाते हैं. तो उन पंक्तियों की क्रिया स्त्रीलिंग सूचक होगी.  कृपया मेरा मार्गदर्शन कीजिये. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service