For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"हुजुर माई बाप, हम बहुत अफदरा में पड़ल बानी, मदद करीं, अब त एगो राउरे सहारा बा", मोहन लाल के मेहरारू सुरसतिया विधायक जी से गिड़गिड़ात एके सास में कह दिहलस, विधायक जी पूछनीं कि बात का ह बोल, सुरसतिया सुस्कत बतवलस कि ओकर आदमी के केंसर हो गइल बा आ बम्बई के डाक्टर आपरेसन खातिर एक लाख मंगले बा, पचहतर हजार के जोगाड़ त गहना-गुरिया आ रिश्तेदारन से करजा ले के जुटा लेले बिया, बाकी पच्चीस हजार अबहियों घटत बा जेकरा खातिर उ विधायक जी से मदद चाहत बिया, विधायक जी कुल बात सुन के सुरसतिया के आश्वासन दिहले कि, जा घरे, हम देखत बानी का हो सकत बा,  सुरसतिया उमीद बन्हले घरे चल आइल |

विधायक जी के पीए अजित बाबू विधायक जी से पुछले ..."सर, सुरसतिया के पइसा भेज दिहल जाव",   विधायक जी कहले, "अजित बाबू, एइजा पईसा के पेड़ नईखे लागल जे लुटावत फिरबऽ",   अजित बाबू तनी हिम्मत ध के धीरे से बोलले, "सर, ऊ मोहन लाल आपन पार्टी के कट्टर समर्थक हवे, अउर, खास बात कि ऊ राउरे जात से भी हवे",  

विधायक जी हँस के कहले, "अजित बाबू रौआ के त मालूमे बा जे हम जात पात में विश्वास ना करीले"

"पररर... सर, रौआ दूइये महिना पहिले चुनाव में आपन जाति के हवाला दे के खूब वोट बटोरले बानी"

"धुत्त बुरबक कही के, चुनाव के बात अलग होला" |    

हमार पिछुलका पोस्ट => एगो प्रयोग :- भोजपुरी हाइकू

Views: 2223

Replies to This Discussion

आदरणीय योगराज भाई साहब की लघुकथा की विधा से संबन्धित उपरोक्त सलाह पर ध्यान देना, मैं समझता हूँ, हर लघुकथा लेखक की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिये.   कहना न होगा लघुकथा की सफलता इन्हीं बातों पर निर्भर करती है.

’सीखने-सिखाने’ की प्रकिया का ओबीओ के मंच पर जिस तरह से निर्वहन होता है गणेशभाई की सकारात्मक प्रतिक्रिया उसकी बानगी है.  यह उन नये सदस्यों के लिये भी मानक है जो किसी भी सकारात्मक सुझाव या सलाह को नकारात्मक आलोचना समझ बिलबिला जाते हैं. जबकि किसी को कत्तई शुबहा नहीं होना चाहिये कि इस मंच के माध्यम से  सुझावों के जरिये किसी की हिनाई नहीं की जाती है, अलबत्ता विचार यह होता है कि रचना की प्रतिष्ठा बढ़े और रचनाकारों की प्रतिभा में उत्तरोत्तर विकास हो.

सादर.

आदरणीय सौरभ भाई जी, मेरे कहे को मान दिया - दिल से आभारी हूँ.
लघुकथा के सम्बन्ध में कहा ये जाता है कि इसमें जो कहा जाता है वह तो महत्वपूर्ण होता ही होता है, लेकिन उस से भी महत्वपूर्ण वह होता है जो नहीं कहा गया हो.  यह "जो नहीं कहा गया हो" वाली टर्म बड़ी रोचक है, मेरी नाचीज़ राय में इस से मुराद है:

१. ऐसी बात जो बिना कहे भी कह दी गई हो.
२. ऐसी बात जिसे अगर न ही कहा जाता तो बेहतर होता.


एक बात और, जहाँ कहानी में संरचना, प्लाट, कथोप-कथन, चरित्र-चित्रण, भाषा, एवं शैली आदि बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व माने गए हैं, वहीँ लघुकथा में "शीर्षक" को भी रचना का एक अति महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. लघुकथा में क्योंकि बात को बहुत ही कम शब्दों और बिना डिटेल से कहना होता है, तो ऐसे में शीर्षक भी रचना के पूरे लब्बो-लुबाब की तर्जुमानी करने वाला होना चाहिए. इस लिए मुझे लगता है कि लघुकथा का शीषक यदि "गिरगिट", "खुदगर्ज़"  या "बदलते मौसम" होता तो कहीं ज्यादा बेहतर न होता ? सादर.

आपकी प्रस्तुत टिप्पणी को लघु-कथा पाठ का हिस्सा कर लिया जाता और वहाँ इस लिंक को रेफ़र किया जाता. 

यह सही है आदरणीय, लघुकथा आकार मात्र से लघु नहीं होती या कम वाक्यों समेट दी गयी कोई छोटी कथा भर नहीं होती, बल्कि यह एक विशद विधा है. इसमें एक वेगवती अंतर्धार हुआ करती है जिसकी गति को पाठक कथा समाप्त होने के बाद बड़ी शिद्दत से महसूस करता है.

इन मानकों पर गणेशभाईकी प्रस्तुत रचना बखूबी उतरती है. लेकिन शिल्पगत सुझाव को मान लिया जा तो इसी कथा को सुगढ़ रूप दिया सकता है.

मेरे मत से इस कथा का शीर्षक भोजपुरी टंच का ही हो. उस लिहाज से  शीर्षक ’चुनाव के कहलका’  यानि ’चुनाव में कही हुई’ समीचीन होगा. ’बदलल मौसम’ (बदलते मौसम) भी बहुत ही सटीक शीर्षक है.

वैसे, गणेश भाई ने पंच-लाइन (मूल-वाक्यांश) को शीर्षक बनाया है जो कथा के प्रति उत्सुकता बढ़ाती है. यह भी एक बेहतर परिपाटी है और मैं गणेशभाई द्वारा प्रदत्त शीर्षक से संतुष्ट हूँ. 

sadhuvad....bahut sundar rachana

santosh patel

editor: Bhojpuri Zindagi

आभार संतोष भाई |

आदरणीय गनेश सर...

दुइये मिनट में आजु के हालात क करारा चित्रण करत यह रचना के आजे पढ़ थई,नीमन लागल हौ अउर अउरी के इल्तिजा करत हई|

आदरणीय मनोज कुमार जी, कथा सराहे खातिर बहुत बहुत आभार, माई सुरसती के किरिपा होई त अउर रचना जल्दिये रौरा सोझा होई |

आदरणीय बागी जी, सादर प्रणाम 
बहुत सही बतिया कहे  आप अपनी कथा में. जग की रीती यही हा. कमवा निकले  बाद कौनो न पूछीला
फिर तो ये विधायक हैं.  बधाई. 

बढियां रचना गणेश जी...खासकर कि ई भोजपुरी में बा...मज़ा आ गईल......बधाई बा!

आभार पियूष भाई |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service