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हे जलधि, जब कोई ग़ोताखोर
तुम्हारे गर्भ में घुस,
मोती चुग-
दूर हो जायेंगा,
प्यार को वासनामयी
आँखों से देखा जायेंगा |
अगर- ग़ोता लगा,
गर्भ में ही लीन हो जायेंगा,
प्यार पूज्य हो जायेंगा |
फूल-सा चेहरा खिलेगा(जन्मेगा)
चमन में खुशबु महकेगी
किसी को कोई
आपत्ति नहीं होगी |

- लक्ष्मण लडीवाला, जयपुर

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 6, 2012 at 9:49am

आदरणीया रेखा जोशीजी, और राजेश कुमारीजी आप द्वारा गहनतम टिपण्णी कर मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु सदर नमन और हार्दिक आभार |

स्नेहिल सौरभ पाण्डेयजी और सुस्रेन्द्र कुमार भ्रमरजी रचना पसंद आई, आपकाहार्दिक धन्यवाद 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2012 at 12:18am

सुन्दर भाव हैं.  रचना प्रस्तुति हेतु सादर धन्यवाद.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 5, 2012 at 11:51pm

आदरणीय लक्ष्मण जी अभिवादन गुप्त और गहन अभिव्यक्ति लिए सुन्दर रचना ...ये प्यार महके .....ऐसा ही हो जाए तो आनंद और आये 

प्यार पूज्य हो जायेंगा |
फूल-सा चेहरा खिलेगा(जन्मेगा) 
चमन में खुशबु महकेगी 
किसी को कोई
आपत्ति नहीं होगी |  
आभार 
भ्रमर 5 
भ्रमर का दर्द और दर्पण  

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2012 at 11:27pm

सामजिक सांसारिक स्रष्टि उत्पत्ति के कठोर सत्य नियम और प्यार की कसौटी को  कितनी सुन्दर गहन शब्दों से बांधा है लक्ष्मण लडिवाला जी आपकी लेखनी को नमन 

Comment by Rekha Joshi on July 5, 2012 at 5:08pm

आदरणीय लक्ष्मण जी 

अगर- ग़ोता लगा,
गर्भ में ही लीन हो जायेंगा,
प्यार पूज्य हो जायेंगा |,बहुत खूब ,सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई 

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